________________
वेरावल मध्ये श्रावक अमीलाल रतिलाल जैन ! धर्मलाभ । आपका पत्र मिला । पढ़कर समाचार ज्ञात हुए। आपके पत्र का उत्तर इस प्रकार हैं :
चौदह स्वप्न, पारणा, घोड़ियाँ तथा उपधान की माला की बोली का घी-ये सभी आय शास्त्र की दृष्टि से देवद्रव्य में ही जाती हैं । और यही उचित है। तत्सम्बन्धी शास्त्र के पाठ 'श्राद्धविधि' 'द्रव्य सप्ततिका' एवं अन्य सिद्धान्त-ग्रन्थों में हैं। अतः यह आय देवद्रव्य की ही है। इसे साधारण खाते में जो ले जाते हैं वे स्पष्ट रूप से गलती करते हैं। धर्मसाधन में उद्यत रहें।
लि. आचार्यदेव की आज्ञा से. द. : 'मुनि कुमुदविजय की ओर से धर्मलाभ'
.
(२)
. अहमदनगर, ख्रिस्ती गली जैन धर्मशाला, सुदी १४
पू. पाद आचार्यदेव श्री विजयप्रेम सूरीश्वरजी म. की तरफ से सुश्रावक अमीलाल रतीलाल योग धर्मलाभ वांचना। तारीख १० का आपका पत्र मिला। चवदह स्वप्न, पारणा, घोड़ियां तथा उपधान की मालादि के घी (आय) को अहमदाबाद मुनि सम्मेलन ने शास्त्रानुसार देवद्रव्य में ले जाने का निर्णय किया है । वही योग्य है । धर्मसाधना में उद्यमवंत रहें।
द. : 'त्रिलोचन विजय का धर्मलाम'
-
स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य ]
[ 15