Book Title: Swami Kartikeyanupreksha Author(s): Jaychandra Pandit Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha View full book textPage 6
________________ प्रस्तावना. ( प्रथम संस्करण ) पाठक महाशय ! हमारी इच्छा थी कि मूल ग्रन्थकर्ताका जीवन च "रित्र यथाशक्ति संग्रह करके प्रकाशित किया जाय परंतु यथासाध्य अन्वेण करनेपर भी ग्रन्थकर्ताका कुछ भी तथ्य संग्रह नहिं हुवा. विशेष खेदकी बात यह है कि स्वामिकार्तिकेय मुनिमहाराज कौनसी शताब्दी में हुए सो भी निर्णय नहिं हुवा यद्यपि दंतकथापरसे प्रसिद्ध है कि ये आचार्यवर्य विक्रम संवत्से दो तीन सौ वर्ष पहिले हुये हैं. परंतु जबतक कोई प्रमाण न मिले इस दंतकथापर विश्वास नहिं किया जा सक्ता. आचार्यों की कई पट्टावली भी देखी गईं उनमें भी इनका नाम कहीं पर भी दृष्टिगो• चर नहिं हुवा किंतु इस ग्रंथकी गाथा ३९४ की संस्कृत टीका वा भाषा टीका में इतना अवश्य लिखा हुवा मिला कि - " स्वामिकार्त्तिकेय मुनि कोंचराजाकृत उपसर्ग जीति देवलोक पाया परंतु कचराजा कब हुवा और यह वाक्य कौनसे प्रथके आधारसे टीकाकारने लिखा है सो हमको मिला नहीं. एक मित्रने कहा कि इनकी कथा किसी न किसी कथा कोमें मिलेगी. परंतु प्रस्तुत समयतक कोई भी कथाकोश हमारे देखने में नहिं आया परंतु इसमें कोई संदेह नहीं कि ये बालब्रह्मचारी आचार्यश्रेष्ठ दो हजार वर्षसे पहिले हो गये हैं. क्योंकि इस ग्रन्थकी प्राकृत भाषा व रचनाकी शैली विक्रमशताब्दी के बने प्राकृत पुस्तकोंसे भिन्न प्रकारकी हृीं यत्र तत्र दृष्टिगत हुई. प्रचलित आधुनिक प्राकृतभाषा के व्याकरणोंमें भी - इस ग्रन्थ आर्षप्रयोगोंकी सिद्धि बहुत कम मिलती है. इसकारण मूल पुस्तकको शुद्ध करनेमें भी सिवाय प्राचीन प्रतियोंके कोई साधन प्राप्त नहिं हुवा है । ""Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 306