Book Title: Suttagame 01
Author(s): Fulchand Maharaj
Publisher: Sutragam Prakashan Samiti
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११७८
सुत्तागमे
[ अंतगडद साओ
भुंजमाणा विहरंति, तए णं तस्स अज्जुणयस्त मालागारस्त अयमज्नत्थिए ४ (स० ), एवं खलु अहं वालप्पभिई चेव मोग्गरपाणिस्स भगवओ काकलिं जाव कप्पेमाणे विहरामि, तं जइ णं मोग्गरपा (णि) णी जक्खे इह संणिहिए होंते से णं किमनं एयारूवं आवईं पावेजमाणं पाते ?, तं नत्थि णं मोग्गरपाणी जक्खे इह संणिहिए, सुव्वत्तं तं एस कट्टे, तए णं से मोग्गरपाणी जक्खे अजुणयस्स मालागारस्स अयमेयारूवं अ- भत्थियं जाव विया (णि) णेत्ता अजूणयस्त मालागारस्स सरीरयं अणु-पविसइ २ त्ता तडतडतडस्स बंधाई छिंदइ, [ छिंदित्ता ] तं पलसहस्सणिप्फण्णं अयोमयं मोग्गरं गेण्हइ २ त्ता ते इत्थिसत्तमे पुरिसे घाएइ, तए णं से अज्जुणए मालागारे मोग्गरपाणिणा जक्खेणं अण्णाइडे समाणे रायगिहस्स नगरस्स परिपेरंतेणं कलाकलि छ इत्थिसत्तमे पुरिसे घाएमाणे विहरइ, (तए णं) रायगिहे नयरे सिंघाडग-जाव महापहपहेतु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्लइ ४ - एवं खलु देवाणुप्पिया ! अजणए सालागारे मोग्गरपाणिणा अण्णाइट्ठे समाणे रायगिहे नयरे वहिया छ इत्थिसत्तमे पुरिसे घा (य) एमाणे विहरड़, तए णं से सेणिए राया इमीसे कहाए लट्ठे समाणे कोडुंविय० सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया ! अजुगए मालागारे जाव घाएमाणे जाव विहरइ तं मा णं तुव्से के इ कटुस्स वा तणस्स वा पाणियस्स वा पुप्फफलाणं वा अट्ठाए सइरं निग्गच्छउ मा णं तस्स सरीरस्स वावत्ती भविस्सइत्तिकट्टु दोचं-पि तचं - पि घोसणयं घोसेह २ त्ता खिप्पामेव ममेयं पञ्चप्पिणह, तए णं ते कोडंविय[0] जाव पञ्चप्पिणंति, तत्थ णं रायगिहे नगरे सुदंसणे नामं सेट्ठी परिवसइ अड्ढे, तए णं से सुदंसणे समणोवासए यावि होत्था अभि (म) गयजीवाजीवे जाव विहरइ, तेणं काळेणं तेणं समएणं समणे भगवं जाव समोसढे [0] विहरइ, तए गं रायगिहे नगरे सिंघाडग० बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खड़ जाव किसंग पुण विपुलस्स अट्ठस्स गहणयाए [0] एवं तस्स सुदंसणस्स बहुजणस्स अंतिए एयं सोचा निसम्न अयं अन्व्भत्थिए ४ - एवं खलु समणे जाव विहरइ तं गच्छामि णं [0] वंदामि०, एवं संपेहेइ २ ता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ २ त्ता करयल० अञ्जलिं कट्टु एवं वयासी - एवं खलु अम्मयाओ ! समणे जाव विहरइ तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वंदामि नम॑सामि जाव पज्जुवासामि, तए णं (तं) सुदंसणं सेट्ठि अम्मापियरो एवं वयासी एवं खलु पुत्ता ! अजु (णे ) णए मालागारे जाव घाएमाणे विहरइ, तं माणं (तुमं) पुत्ता ! समणं भगवं महावीरं वंदए निग्गच्छाहि, माणं

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