Book Title: Suttagame 01
Author(s): Fulchand Maharaj
Publisher: Sutragam Prakashan Samiti
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परिसमत्ती]
सुत्तागमे
१२३९ सुप्पणिहियं इमेहिं पंचहि-वि कारणेहिं मणवयकायपरिरक्खिएहिं निचं आमरणतं च एस जोगो नेयव्यो धितिमया मतिमया अणासवो अकलुसो अच्छिद्दो अपरिस्सावी असंकिलिट्ठो सुद्धो सव्वजिणमणुन्नातो, एवं पंचमं संवरदारं फासियं पालियं सोहियं तीरियं किट्टियं अणुपालियं आणाए आराहियं भवति, एवं नायमुणिणा भगवया पन्नवियं परूवियं पसिद्धं सिद्धं सिद्धवरसासणमिणं आघवियं सुदेसियं पसत्यं पंचम संवरदारं समत्तंतिबेमि । एयाति वयाइं पंचवि सुव्वयमहव्वयाइं हेउसयविचित्तपुक्कलाई कहियाइं अरिहंतसासणे पंच समासेण संवरा वित्थरेण उ पणवीसतिसमियसहियसंबुडे सया जयणघडणसुविसुद्धदंसणे एए अणुचरियसंजते चरमसरीरधरे भविस्सतीति ।। २९ ॥ पण्हावागरणे णं एगो सुयक्खंधो दस अज्झयणा एकसरगा दससु चेव दिवसेसु उद्दिसिज्जति एगंतरेसु आयंबिलेसु निरूद्धेसु आउत्तभत्तपाणएणं अंगं जहा आयारस्स ॥ ३०॥

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