Book Title: Suttagame 01
Author(s): Fulchand Maharaj
Publisher: Sutragam Prakashan Samiti
View full book text
________________
क्लवमाणीकरण आसत्या कोह) को
सु० १ ०२]
सुत्तागमे
१२५३ धस-त्ति धरणीयलंसि सव्वंगे(हिं)ण संनि(प)वडिया, तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही मुहुत्तंतरे-ण आसत्था समाणी वहहिं मित्त जाव परिवुडा रोयमाणी कंदमाणी विलवमाणी विजयमित्तसत्यवाहस्स लोइयाइं मयकिच्चाई करेइ, तए णं सा सुभद्दा सत्यवाही अ-नया कया-इ लवणसमुद्दोत्तरण च लच्छिविणासं च पोयविणासं च पइमरणं च अणुचिं(त)तेमाणी २ कालधम्मुणा संजुत्ता ॥ ११॥ तए णं ते न-गर' गुत्तिया सुभदं सत्यवा(ह)हिं कालगयं जाणित्ता उज्झियगं दारगं सया-ओ गिहाओ निच्छुभंति निच्छुभित्ता तं गिह अ-नस्स दलयंति, तए णं से उज्झियए दारए सयाओ गिहाओ निच्छुढे समाणे वाणियगामे नयरे सिंघाडग जाव पहेसु जूय(ख)खेलएसु वेसियाघ-रेसु पाणागारेसु य सुहंसुहेणं परिवड्डइ, तए णं से उज्झियए दारए अणोह[टि]टए अणिवारिए सच्छंदमई सइर[]पयारे मजप्पसंगी चोरजूयवेसदारप्पसंगी जाए यावि होत्था, तए णं से उज्झियए अ-नया कया-इ कामज्झयाए गणियाए सद्धिं संपलग्गे जाए यावि होत्था, कामज्झयाए गणियाए सद्धिं विउलाई उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ, तए णं तस्स विजयमित्तस्स र-नो अ-नया कया-इ सिरीए देवीए जो(णी)णिसूले पाउन्भूए यावि होत्था, नो संचाएइ विजयमित्ते राया सि(रि)रीए देवीए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए, तए णं से विजयमित्ते राया अ-नया कया-इ उज्झियदारयं कामज्झयाए गणियाए गिहाओ निच्छुभावेइ २ त्ता कामज्झयं गणियं अन्भितरियं ठावेइ २ त्ता कामज्झयाए गणियाए सद्धिं उरालाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ । तए णं से उज्झियए दारए कामज्झयाए गणियाए गिहाओ निच्छुमेमाणे कामज्झयाए गणियाए मुच्छिए गिद्ध गढिए अज्झोवव-न्ने अ-नत्थ कत्थइ सुइं च रइं च घिइं च अविंदमाणे तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तयप्पियकरणे तब्भावणाभाविए कामज्झयाए गणियाए बहूणि अंतराणि य छि(हा)डाणि य विवराणि य पडिजागरमाणे २ विहरइ, तए णं से उज्झियए दारए अ-नया कया-इ कामज्झयं गणियं अंतरं ल(भे)न्भेइ, [२] कामज्झयाए गणियाए गिह रहसियं अणुप्पविसइ २ त्ता कामज्झयाए गणियाए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ । इमं च णं मित्ते राया ण्हाए सव्वालंकारविभूसिए मणुस्सवागुरा(ए)परि[खि]क्खित्ते जेणेव कामज्झयाए गिहे तेणेव उवागच्छइ २ ता तत्य णं उज्झियए दारए कामज्झयाए गणियाए सद्धिं उरालाई भोगभोगाइं जाव विहरमाणं पासइ २ त्ता आसुरुत्ते [४] तिवलियभिउडिं नि(लाडे)डाले साहटु उज्झिय-गं दार- पुरिसेहिं गिण्हावेइ २ त्ता अद्विमुहिजाणुकोप्परपहारसंभग्गमहियगत्तं करेइ

Page Navigation
1 ... 1303 1304 1305 1306 1307 1308 1309 1310 1311 1312 1313 1314