Book Title: Suttagame 01
Author(s): Fulchand Maharaj
Publisher: Sutragam Prakashan Samiti
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सं०] ... सुत्तागमे
१२२३ परदव्वअभिजा संप[रि]रदारअभिगमणासेवणाए आयासंविसूरणं कलहभंडणवेराणि य अवमाणणविमाणणाओ इच्छामहिच्छप्पिवाससतततिसिया तण्हगेहिलोभघत्था अत्ताणा अणिग्गहिया करेंति कोहमाणमायालोभे अकित्तणिजे परिग्गहे चेव होंति नियमा सल्ला दंडा य गारवा य कसाया सन्ना य कामगुण-अण्हगा य ईदियलेसाओ सयणसंपओगा सचित्ताचित्तमीसगाई दवाई अणंतकाई इच्छंति परिघेत्तुं सदेवमणुयासुरम्मि लोए लोभपरिग्गहो जिणवरेहि भणिओ नत्थि एरिसो 'पासो पडिवंधो अत्थि सव्वजीवाणं सव्वलोए ॥ १९॥ परलोगम्मि य नट्ठा तमं पविठ्ठा महयामोहमोहियमती तिमिसंधकारे तसथावरसुहुमवादरेसु पजत्तमपजत्तग एवं जाव परियति दीहमद्धं जीवा लोभवससंनिविट्ठा । एसो सो परिग्गहस्स फलविवाओ इहलोइओ परलोइओ अप्पसुहो बहुदुक्खो महमओ वहुरयप्पगाढो दारुणो ककसो असाओ वाससहस्सेहिं मुच्चइ, न-य-अवे(त)तित्ता अस्थि हु मोक्खोत्ति, एवमाहंसु नायकुलनंदणो महप्पा जिणो उ वीरवरनामधेजो कहेसी य परिग्गहस्स फलविवागं । एसो सो परिग्गहो पंचमो उ नियमा नाणामणिकणगरयणमहरिह एवं जाव इमस्स मोक्खवरमोत्तिमग्गस फलिहभूयो चरिमं अधम्मदारं समत्तं । एएहिं पंचहिं असंवरेहिं रयमादि] चिणित्तु अणुसमयं । चउविहग[ति इ(पज्ज)पेरंतं अणुपरियति संसारं ॥ १॥ सव्वगई पक्खंदे का[हें]हिंति अणंतए अकयपुण्णा । जे य ण सुणंति धम्मं सो(सुणि)ऊण य जे पायंति ॥ २॥ अणुसिटुं"पि वहुविहं मिच्छादिट्ठी (य जे) णरा अ(हमा)बुद्धीया । वद्धनिकाइयकम्मा सु(ग)ऐति धम्मं न य करेंति ॥ ३॥ किं सका काउं जे जंणेच्छह ओसहं मुहा पाउं । जिणवयणं गुणमाधु]हरं विरेयणं सव्वदुक्खाणं ॥ ४॥ पंचेव य उज्झिऊणं पंचेव य रक्खिऊण भावेण । कम्मरयविप्पमुक्का सिद्धिवरमणुत्तरं जंति ॥ ५॥ (त्तिवेमि ।) २० ॥जंवू !-एत्तो संवरदाराइं पंच वोच्छामि आणुपुव्वीए । जह भणियाणि भगवया सव्वदुहविमोक्खणट्ठाए ॥१॥ पढम होइ अहिंसा वितियं सच्चवयगंति पन्नत्तं । दत्तमणुन्नाय संवरो य वंभचेरमपरिग्गहत्तं च ॥ २ ॥ तत्थ पढम अहिंसा तसथावरसव्वभूयखेमकरी । तीसे सभावणा(ए)ओ किची वोच्छं गुणुद्देसं ॥ ३ ॥ ताणि उ इमाणि सुव्वय । महन्वयाई लोक[हियस]धिइअव्वयाइं सुयसागरदेतियाइं तवसंजममहन्वयाई सीलगुणवरव्वयाई सच्चन्नवव्वयाइं नरगतिरियमणुयदेवगतिविवज्ज“काई सव्वजिणसासणगाई कम्मरयविदारगाइं भवसयविणासणकाई दुहसयविमोयण
काई सुहसयपवत्तणकाइं कापुरिसदुरुत्तराई सप्पुरिस(तीरि)निसेवियाई निव्वाणगमण“मग्ग-सग्ग()प(याण)णाय गा]काई संवरदाराइं पंच कहियाणि उ भगवया ।

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