Book Title: Suttagame 01
Author(s): Fulchand Maharaj
Publisher: Sutragam Prakashan Samiti
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११९८
‘सुत्तागमे [अणुत्तरोववाइयदसामो समोस(ई)रणं जहा ध-ण्णो तहा सुणक्ख(त्ते-s)त्तो-वि निग्ग(ते)ओ जहा थावच्चापुत्तस्स तहा निक्खमणं जाव अणगारे जाए ई-रियासमिए जाव वंभयारी, तए णं से सुणक्खत्ते (अणगारे) जं चेव दिवसं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे ‘जाव पव्वइए तं चेव दिवसं अभिग्गहं तहेव जाव बिलमिव [.] आहारेइ संजमेणं जाव विहरइ [.] वहिया जणवयविहारं विहरइ एक्कारस अंगाई अहिज्जइ [.] संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, तए णं से सुणक्खत्ते (अ०) तेणं ओ-रालेणं [.] जहा खंदओ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए उजाणे सेणिए -राया सामी समोसढे परिसा निग्गया राया निग्गओ धम्मकहा राया पडिगओ परिसा पडिगया, तए णं तस्स सुणक्खत्तस्स अण्णया कया-इ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयसि धम्मजा० जहा खंदयस्स व(ह)ह वासा परियाओ गोयमपुच्छा तहेव कहेइ जाव सव्वट्ठसिद्ध विमाणे दे(वे)वत्ताए उववण्णे तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता, से गं भंते !० महाविदे(-वासे)हे सिज्झिहिइ ॥ [(इ०) वी(वी)यं अज्झयणं समत्तं ॥ ] "एवं (ख० ज०) सुणक्वत्तगमेणं सेसा-वि अट्ठ भाणियब्वा, नवरं आ-णुपुन्वीए दोण्णि रायगिहे दोण्णि साएए दोणि वाणियग्गामे नवमो हत्थि(ण)णापुरे दसमो -रायगिहे नवण्हं भद्दाओ जणणीओ नवण्ह-वि बत्तीसओ दाओ नवण्हं निक्खमणं थावच्चापुत्तस्स सरिसं वेहल्लस्स-पिया करेइ छम्मासा वेहल्लए नव धण्णे सेसाणं व-हू चासा(ई) मासं संलेहणा स(वे)वठ्ठसिद्ध महाविदे-हे सि(ज्झणा)ज्झि(हिं)स्संति [एवं दस अज्झयणाणि] । एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं सयंसंयुद्धणं लोगणाहेणं लोगप्पदीवेणं लोगपज्जोयगरेणं अभयदएणं सरणदएणं चक्खुदएणं मग्गदएणं धम्मदएणं धम्मदेसएणं धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिणा अप्पडिहयवरणाणदसणधरेणं जिणेणं जाणएणं बुद्धणं वोहएणं मोक्केणं मोयएणं तिण्णेणं तारएणं सिवमयलमख्यमणंतमक्खयमव्वावाहमपुणरावत्तयं सिद्धिगइणाम'धेयं ठाणं संपत्तेगं अणुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते ॥ ६ ॥
अणुत्तरोववाइयदसाओ समत्ताओ॥ (अणुत्तरोववाइयदसाणामं सुत्तं) नवममंग समत्तं ।। [अणुत्तरोववाइयदसाणं एगो सुयखं० तिण्णि व० तिसु चेव दिवसेसु उ० तत्थ पढमे वग्गे दस उद्देस० विइ(वी)ए वग्गे तेरस उद्देस० तइए वग्गे दस उद्देस० -सेसं जहा धम्मकहा ने(ना)य(व)वा ॥ ७ ॥]

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