Book Title: Suttagame 01
Author(s): Fulchand Maharaj
Publisher: Sutragam Prakashan Samiti

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Page 1260
________________ सुत्तागमे १२०० [पण्हावागरण नगरगोत्तियाणं लंछणनिलंछणधमणदुहणपोसणवणणदवणवाहणादियाई साहिति वहूणि गोमियाणं धातुमणिसिलप्पवालरयणागरे य साहिति आगरीणं पुप्फविहि फलविहिं च साहिति मालियाणं अग्घमहुकोसए य साहिति वणचराणं जताई विसाई मूलकम्मं आ(हिन्व)हेवण आविंधण]आभिओगमंतोसहिप्पओगे चोरिचपरदारगमणवहुपावकम्मकरणं उक्खंधे गामघातियाओ वणदहणतलागभेयणाणि बुद्धिविसविणासणाणि वसीकरणमादियाइं भयमरणकिलेसदोसजणणाणि भावबहुसंकि. लिट्ठमलिणाणि भूतघातोवघातियाई सन्चाइंपि ताई हिसकाई वयणाई उदाहरंति पुट्ठा वा अपुट्ठा वा परतत्तियवावडा य असमिक्खियभातिणो उपदिसति सहसा उद्या गोणा गवया दंमंतु परिणयवया अस्सा हत्थी गवेलगकुमुडा य किजंतु किणावेध य विक्रेह पयह य सयणस्स देह पियय दासिदासभयकभाइलका य लिस्सा य पेसकजणो कम्मकरा य किंकरा य एए सयणपरिजणो य कीस अच्छंति [१] भारिया भे क(रिंतु)रित्तु कम्मं गहणाई वणाई खेत्तखिलभूमिवन्दराई उत्तणघणसंकटाइंडज्जंतु सूडिजंतु य रुक्खा भिजंतु जंतभंडाइयस्स उवहिस्स कारणाए बहुविहस्स य अट्ठाए उच्छू दुजंतु पीलिजंतु य तिला पयावेह य इट्टकाउ मम घरट्टयाए खेत्ताई कसह कसावेह य लहुं गामआगरनगरखेडकब्बडे निवेसेह अडवीदेसेमु विपुलसीमे पुप्फाणि य फलाणि य कंदमूलाई कालपत्ताइं गेण्हेह करेह संचयं परिजणढयाए साली वीही जवा य लुच्चंतु मलिज्जंतु उप(फ)पणिज्नंतु य लहुं च पविसंतु य कोट्ठागारं अप्पमहउक्कोसगा य हंमंतु पोयसत्या सेणा णिज्जाउ जाउ डमर घोरा वटुंतु य संगामा पवहंतु य सगडवाहणाई उवणयणं चोलगं विवाहो जन्नो अमुगम्मि उ होउ दिवसे सुकरणे सुमुहुत्ते सुनक्खत्ते सुतिहिसु य अज्ज होउ ण्हवणं मुदितं बहुखज्जपिज्जकलियं कोतुकं विण्हावणकं सतिकम्माणि कुणह ससिरविगहोवरागविसमेसु सज्जणपरियणस्स य नियकस्स य जीवियस्स परिरक्खणट्ठयाए पडिसीसकाइं च देह देह य सीसोवहारे विविहोसहिमज्जमंसभक्खन्नपाणमल्लाणुलेवणपईवजलिउज्जलसुगंधिधूवावकारपुप्फफलसमिद्धे पायच्छित्ते करेह पाणाइवायकरणेणं बहुविहेणं विवरीउप्पायदुस्सुमिणपावसउणअसोमग्गहचरियअमंगलनिमित्तपडिघायहेडं वित्तिच्छेयं करेह मा देह किंचि दाणं सुटु हओ सुट्ट हओ मुट्ठ छिन्नो भिन्नत्ति उवदिसंता एवंविहं करेंति अलियं मणेण वायाए कम्मुणा य अकुसला अणजा अलियाणा अलियधम्मणिरया अलियासु कहासु अमिरमंता तुहा अलियं करेत्तु हों-ति य बहुप्पयारं ॥ ७ ॥ तस्स य अलियस्स फलविवागं अयाणमाणा वद्वेति महब्भयं अविस्सामवेयणं दीहकालं बहुदुक्खसंकडं नरयतिरियजोणिं तेण य अलिएण समणुबद्धा

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