Book Title: Sudharma Dhyana Pradip
Author(s): Sudharmsagar, Lalaram Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 156
________________ स्याद्विश्वभूतले । इति चिन्तापरस्येन तन्माहात्म्यविचिन्तनम् ।।२६।। जिनशासनस्य संवृद्ध श्चिचन्तन शुभभावतः ।। तदाज्ञाविचयं प्राहुरागमे धर्मधोश्यराः ॥२७॥ श्रीस्याद्वादसुसिद्धांतचएणोऽजेयः कथं भवेत् । स्वचित्ते चिन्तनं चैतन पौनः पुन्यं दिवानिशम् ||२८|| मिथ्याकान्तमतैः सार्द्धमिध्यादुर्वादिभिः समम् । कृत्वा वाचशास्त्रार्थ जिनशासनदीपनम् ॥२६॥ स्थापनं शासनस्यात्र भुवि कृत्वा प्रभावना । वर्द्धनं शासनस्यापि शक्त्या भक्त्या सुभावतः ॥३०॥ श्रीशासनप्रभावाय चिन्तनं च विचारणम् । तदर्थ मनसा चाचा कायेन तत्सुधारणम् ॥३१।। स्याद्वादशासनस्यात्र वृद्धिर्या चिन्यते बुधः । तदाज्ञाविचयं ध्यानं प्रोक्तं धर्मप्रभावकम् ॥३२॥ जिनेश्वररथस्यात्र भ्रामणं नसकेन यत् । श्रीशासनस्य माहात्म्य. गोतकं हि कथं भवेम्॥३तदर्थं च महाभक्त्याभूयो भूयो विचारणम् । तदानाविषयं नामध्यानमाहात्म्यवर्द्धकम् ॥३४॥ १४ ॥ करना अथवा शुभ परिणामोंसे जिनशासनकी वृद्धिका चितवन करना आज्ञा चिचय नामका धर्मभ्यान || कहलाता है, ऐसा धर्मके ईश्वर भगवान अम्हंतदेवने कहा है ॥२६-२७॥ यह स्याद्धवादरूप सिद्धान्त अक्षुण्ण और अजेय किस प्रकार हो । इस प्रकार रात-दिन बार बार अपने हृदयमें उस सिद्धांतका चिन्तवन | करना, आज्ञाविच्य नामका धर्मध्यान है, अथवा मिथ्या एकांत मतको माननेवालोंके साथ वा मिथ्यादृष्टिवादी प्रतिरादियों के साथ वाद-विवादकर वा शास्त्रार्थकर जिनशासनका माहात्म्य प्रगट करनाआज्ञाविचय नामका धर्मध्यान है । अथवा जिनशासनकी स्थापना करना, उसकी प्रभावना करना, अथवा शक्तिभक्तिपूर्वक श्रेष्ठ परिणामोंसे जिनशासनकी वृद्धि करना आज्ञाविचय नामका धर्मध्यान है । अथवा जिनशासनका प्रभाव प्रगट | करनेके लिये विचार करना, चिन्तन करना अथवा मन, वचन और कायसे उस जिनशासनको शुद्ध रखना भी | आज्ञाविचय नामका धर्मध्यान है । बुद्धिमान लोग जो स्याद्वादमय इस जिनशासनकी वृद्धिका चिन्तवन करते हैं, उसको भी भगवान जिनेन्द्रदेव धर्म की प्रभावना करनेवाला आज्ञाविचय नामका धर्मभ्यान कहते हैं ॥२८-३२।। भगवान जिनेन्द्रदेवके शासन के माहात्म्यको प्रगट करनेवाला, भगवान जिनेन्द्रदेवका रथ बड़े उत्सबके साथ किसप्रकार निकले इसप्रकार भक्तिपूर्वक चार बार चिन्तन करना आज्ञाविचय नामका धर्मध्यान कहलाता है । यह ध्यानको बढ़ानेवाला है ॥३३-३४॥ भगवान जिनेन्द्रदेवके प्रतिबिम्बका महाभिषेक अथवा पूजनके द्वारा आश्चर्य उत्पन्न करनेवाला जिनशासनका माहात्म्य किस प्रकार प्रगट हो? इस प्रकारके PRICKERSARKETISGARKARRICS

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