Book Title: Sudharma Dhyana Pradip
Author(s): Sudharmsagar, Lalaram Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 183
________________ मु०० माटी ऋद्धिधारकाः । संगीतवाद्यनृत्यायैर्दिव्यं शर्म भजन्ति ते ॥५४॥ वैक्रियिकशरीरं वाऽवधिज्ञानं हि चोचमम् । जीवास्तव लभन्ते हि सर्वसौख्यकरं परम् ॥१५॥ न जराव्याधिदारिद्रयमलमूत्रादिजं तथा । गर्मवासोद्भवं दुःखं न तत्र जातुचिन् क्वचित् ॥५६॥ अष्ट मूलगुणाम् येऽत्र धारयन्ति मुभावतः जिनाशां श्रद्धया स्वर्गे दिविजा हि भवन्ति ते ॥५७|| ये पंचागुतं सम्यक् धारयन्तीह भावुकाः । जिनागमप्रमाणेन दिवि देवा भवन्ति ते | ये सप्तव्यसनं त्यक्त्वा कुर्वन्ति संयम परम्। श्रागमश्रद्धचा भक्त्या जायन्ते तेऽमरेश्वराः ॥५|| ये सम्यग्दर्शनं शुद्ध' धारयन्तीह निर्मलम् । ते चाष्टमहिमोपेता देवेन्द्रा हि भवन्ति या ॥६०॥ दर्शनपूर्वक सम्यक कुर्वन्ति विविधं तपः। महामहर्द्धिसम्पन्ना देवदेवा भवन्ति ॥६॥ जिनालय सुनिर्माप्य पूजयन्ति जिनेश्वरम् । ते हि स्वर्गपदं लब्ध्वा जायन्ते पदवीधराः॥२॥ प्रतिष्ठा जिनबिम्बस्य कुर्वन्ति शुद्धभावतः । देवेश्वरपदं धृत्वा शिर्ष वा यान्त्यनुक्रमात ॥६३॥ पंचामृतं जिनेन्द्रस्य बिम्बस्य सुख भोगत रहते हैं ॥५४॥ उनका शरीर क्रियिक होता है और उनको उत्तम अवधिज्ञान होता है । वहाँपर | वे देव समस्त सुख देनेवाली उत्तम सामग्री प्राप्त करते हैं ॥५५॥ वापर न तो कमी वुढ़ापा, व्याधि, दरिद्रता, मल-मूत्र आदिका दुःख होता है और न कमी गर्भसे उत्पन्न होनेका महादुःख भोगना पड़ता है ॥५६॥ वे देव स्वभावसे ही आठ मूल गुणोंको धारण करते हैं और भगवान् जिनेन्द्रदेवकी आज्ञाको श्रद्धापूर्वक धारण करते हैं । ऐसे वे देव स्वर्गमें होते हैं ।।५७|| जो भव्य जीव इस मध्यलोकमें जिनागमकी आमाके अनुसार | पांचों अणुव्रतोंको अच्छीतरह पालन करते हैं, वे स्वर्गमें जाकर देव होते हैं ॥५८॥ जो आगमकी अटल श्रद्धाकर और भक्तिपूर्वक सातों व्यसनोंका त्यागकर श्रेष्ठ संयमको धारण करते हैं, वे स्वर्गमें जाकर देवोंके स्वामी होते हैं ॥५९॥ जो जीव इस सम्बग्दर्शनको शुद्ध और निर्मल रीतिसे पालन करते हैं, वे अणिमा-महिमा आदि आठों ऋद्धियोंसे सुशोभित देवोंके मी इन्द्र होते हैं ॥६०॥ जो भव्य जीव सम्यग्दर्शनपूर्वक अनेक प्रकारके तपश्चरण करते हैं, वे महाऋद्धियोंसे सुशोभित देवोंके भी इन्द्र होते हैं ॥६१॥ जो जीव जिनालय अनवाकर भगवान् जिनेन्द्रदेवकी पूजा करते हैं, वे स्वर्गके पदोंको पाकर चक्रवर्ती तीर्थकर आदि पदवीधर पुरुप होते हैं ॥६२।। जो भव्य जीव शुद्ध मावोंसे जिनबिम्बकी प्रतिष्ठा कराते हैं, वे इन्द्रोंके पदोंको पाकर । अनुकमसे मोक्ष प्राप्त करते हैं ॥६३॥ जो पुरुष भगवान् जिनेन्द्र देवके प्रतिबिम्नका अत्यन्त शुभ पंचामृता ERSXSAKSHRAM ॥१६०

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