Book Title: Sudharma Dhyana Pradip
Author(s): Sudharmsagar, Lalaram Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 212
________________ सु०प्र० भा माणसाला चिटोनिम् ||| सोऽहमइनसौ सोऽहं न भेदः स्वपरात्मनोः । अाईन्नेव स पात्मायमिति ध्यायेत्स्वके सदा ।।७२देवोऽईन्नेव नान्योऽस्ति परमात्मा स एव च । यः परात्मा स एवाहमिति ध्यायेत्स्व सदा॥७२॥ इत्यभ्यास बलेनात्मा परमात्माभवेदथ । तद्भावनापुटे धृत्वा ततोलायेजिनाकृतिम् ।।४३॥ भगवतोऽह द्विम्यस्य ध्यानेन हि सुयोगिनाम् चूर्णयन्ते पुराकर्मचक्राशिच जणादिह कोटिभवान्तारोपात्तपापानि विगजन्ति चाजोवानामहतो विम्बस्य ध्याना. च जपादिह ७॥ अनादिसंमृतेः सङ्घः जिनबिम्बम्य दर्शनात् । शीनं पलायये तस्माग्जिनबिम्वं स्मरेज्जपेन् । ७६| दुःखोत्करं महाविघ्न प्रलयं यादि शीघ्रतः । सर्वसौख्यं समायाति जिनाकृतिजपेन वा ॥७७ अरयोऽपि भजन्तेऽत्र मित्रता हि स्वतः स्वयम् । सिद्धयन्ति सर्वकार्याणि मङ्गलानि भवन्ति च ||८|| अगम्यं गम्यतां याति अशक्यं याति शक्यताम् । वही मैं हूँ, वही मैं हूँ, इसप्रकार अपने आत्मामें तन्मय होकर परमात्मरूप होकर अपने आत्माका ध्यान शरना चाहिये ॥७॥ जो मैं हूँ वही अरत हैं और जो अरहंत हैं वही में है, मेरे आत्मा और परमात्मा कोई मेद नहीं है, अरहंतदेव ही यह मेरा आत्मा हैं इसपकार अपने अपने आत्मामें भदा ध्यान करना चाहिये। ।।७१॥ 'देव भगवान् अरहतदेव ही हैं अन्य नहीं है तथा वे ही परमात्मा हैं और जो परमात्मा है वही मैं हूँ इसप्रकार अपने आत्माका सदा ध्यान करना चाहिये ।।७२।। इस ध्यानके अभ्याससे यह आत्मा परमात्मा || हो जाता है, उस परमात्माको अपनी भावनाके पुट में रखकर उसमें भगवान् जिनेन्द्रदेवकी आकृतिका ध्यान करना चाहिये ॥७३॥ भगवान् अरहंतदेवके प्रतिबिंबका ध्यान करनेसे गोगियोंके पहिलेके संचित हुए। समन्त कर्मों के समूह क्षणमरमें चूर्ण हो जाते हैं ||७४।। भगवान् अरहनदेवके प्रतिकिका ध्यान वा जप करनेसे जीवोंके करोड़ों भवोंसे चले आये समस्त पाप क्षणभरमें नष्ट हो जाते हैं ॥७५।। भगवान् जिनेन्द्रदेवके प्रतिबिम्बका दर्शन करनेसे अनादिकालसे चली आई जन्म-मरणरूप संसारकी परिपाटी बहुत शीघ्र नष्ट हो जाती है, इसलिये भगवान् जिनेन्द्रदेवके प्रतिबिम्बका सदा स्मरण करना चाहिये और सदा।। | उप करना चाहिये ।।७६॥ भगवान् जिनेन्द्रदेवकी प्रतिमाका जप करनेसे समस्त दुःखों के समूह और महा विघ्न शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं और समस्त सुख प्राप्त हो जाते हैं ।।७७॥ भगशन जिनेन्द्रदेवके प्रतिबिंबका न ध्यान करनेसे अनायास ही योगियोंके शत्रु भी अपने आप मित्र बन जाते हैं, समस्त कार्य सिद्ध हो जाते हैं, HE१० R-55

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