Book Title: Sudharma Dhyana Pradip
Author(s): Sudharmsagar, Lalaram Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 229
________________ ।। २१४ ।। BR अन्तिम मंगलं प्रशस्तिश्च 70 श्रीशासनं वीरजिनस्य जीयात् लोकत्रये मङ्गलकारि नित्यम् । सत्यं पवित्रं नरदेवपूज्यं प्रमाणभूतं भुवि सर्वमान्यम् ॥१॥ जिनेन्द्रधर्मो वरसौख्यदाता दयामयः सत्यपरः प्रकृष्टः । प्रमाणभूतश्च विरोधदोनो जोयाश्चिरं मङ्गलदाय कोऽसौ ॥२॥ यन्तु ते तूपाः । लोकोत्तमा मङ्गलदाः शरण्यास्त्रैलोक्यनन्याः शिवदा सुधर्माः ||३|| श्री प्रातिहार्यातिशयैः प्रपन्नो नरेन्द्रनागेन्द्र सुरेन्द्रवन्द्यः योगीश्वरैः पूजितपादपद्मः सोऽईश्व देवः शिवदर सुजोयात् ||४|| शुद्ध स्वरूपो निजभावलीनो विनटकर्माकलङ्कपङ्कः । भवाद्वयतीतो जननादिदोनः सिद्धः प्रबुद्धः सुब Mumum www भगवान् महावीर स्वामीका शासन तीनों लोकों में सदा मङ्गल करनेवाला है, सत्य है, पवित्र हैं, मनुष्य और देवोंके द्वारा पूज्य है, प्रमाणभूत है और संसार भरमें सर्वमान्य है ॥१॥ भगवान् जिनेन्द्रदेवका धर्म दयामय है, उत्तम सुखको देनेवाला है, सत्यार्थ है, उत्कृष्ट है, प्रमाणभूत है, विरोधरहित है और महा मङ्गल करनेवाला है, ऐसा यह जैनधर्म सदा जयशील रहे || २ || इस लोकमें अरहंतादिक पांचों परमेष्ठी शुद्ध आत्माको धारण करनेवाले हैं, श्रेष्ठ हैं, अनुपम हैं, लोकोत्तम हैं, मङ्गलदायक हैं, शरणभूत हैं, तीनों लोकोंके द्वारा चन्दनीय हैं, मोक्ष देनेवाले हैं और श्रेष्ठ धर्मस्वरूप हैं; ऐसे पांचों परमेष्ठी सदा जयशील हों || ३ || भगवान् अरहंत देव आठों प्रातिहार्योंसे सुशोभित हैं, नरेन्द्र, नागेन्द्र और देवेन्द्रोंके द्वारा वंदनीय हैं, योगीश्वरलोग जिनके चरण कमलों की सहा पूजा करते रहते हैं और जो मोक्ष देनेवाले हैं, ऐसे भगवान् अरहंत देव सदा जयशील हों ||४|| जो सिद्ध भगवान् शुद्ध स्वरूप हैं, अपने भावमें सदा लीन हैं, जिन्होंने आठों कर्मरूपी कलङ्ककी कीचड़ सर्वथा नष्ट कर दी हैं, जो संसारसे रहित हैं, जन्म-मरणसे रहित हैं, मुख J

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