Book Title: Sudharma Dhyana Pradip
Author(s): Sudharmsagar, Lalaram Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 231
________________ OR सु०प्र० ...१.२१६ ॥ पावनाः । परवृत्तादिसिद्धशाः श्रीकल्याणाय सन्तु ते ॥१३॥ सिद्धक्षेत्रे परं पूज्ये श्रीवारमाभिधे शुमे। 'भोशान्तिसिंधु'ना तेन सन सह सूरिया ॥१४।। यात्राकारि महाभक्त्या श्रीमहोत्सवपूर्वकम् । प्रमावनाऽभवत्र जिनधर्मस्य शर्मदा ॥११॥ श्रीतारजाख्यदुर्गेऽस्मिन् श्रीतारङ्गाभिधे परे। भीमवृषभदेवस्य चैत्यागारे मनोहरे ॥१६॥ युगद्रव्याधियुग्मेऽस्मिन् वीर. निर्वाणवत्सरे। युग्माङ्कमहीमाने विक्रमा शुभोदये ॥१७॥ मार्गशीर्षेऽसिते पक्षे त्रयोदश्यां विथौ शनौ। 'सुधर्मध्यान-13 दीपास्यो प्रन्थः पूर्णमगादिह ।।१८।। 'सुधर्मध्यानदीपो'ऽयं धर्मध्यानस्य साधकः । गुरुप्रसादतोऽकारि 'सुधर्मसागरेण सः ॥१॥ ज्ञक्षयोपशमाभावात् शक्तिहीनोऽपि भावतः । दिगम्बरपथालम्बी मुनिः 'सुधर्मसागर ॥२०॥ व्यरचहुमशुद्धया हि यानगोग्गनर्मितः । केवल न रपास पाधं ध्यानदीपकम् ॥२॥ ध्यानचार्ता न जानामि शब्दशास्त्रं न शासनम् । । केवलं स्वहितार्थाय शब्दाः संयोजिता मया ॥२२प्रमादादल्पज्ञानत्वाद् विरुद्ध यक्षिनागमात् । ग्रन्थेऽस्मिन् या संजातं वरदत्तादिक सिद्ध परमेष्ठी हमलोगोंको मङ्गल देवें, हमारी इच्छाएं पूर्ण करें और हमारा सदा कल्याण करते रहें ॥१३॥ इसी परम पूज्य और शुम ऐसे वारंगा सिद्ध क्षेत्रपर आचार्य 'श्रीशांति सागर ने अपने संघके सहित बड़ी भक्तिपूर्वक और बड़े उत्सबके साथ यात्रा की थी। उस समय समस्त जीवोंको कल्याण करने वाली जिनधर्म की बड़ी भारी प्रभावना हुई थी ॥१४-१५॥ श्रीतारंगा नामके दुर्गमें श्रीतारंगा सिद्धक्षेत्रपर | भगनान् वृषभदेवके मनोहर चैत्यालयोंमें वीर निर्माण संवत् २४६२ तथा विक्रम संवत् १९९२ १ शुभ मार्गशीर्ष महीनेके कृष्णपक्षकी त्रयोदशी तिथिको शनिवारके दिन यह 'सुधर्मध्यानप्रदीप नामका ग्रन्य पूर्ण हुआ |॥१६-१८।। यह 'सुधर्मध्यानप्रदीप' नामका ग्रंथ धर्म-ध्यानका साधक है और गुरुके प्रसादसे मुनि 'सुधर्मसागर ने बनाया है ॥१९॥ यद्यपि मैं दिगम्बर मतका अनुयायी 'सुधर्मसागर' मुनि हूँ, तो मी ज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमके अभाव होनेसे में शक्तिहीन हूँ, तथापि मैंने अपने भावोंसे, शुद्ध बुद्धिसे, मान और गौरव को छोड़कर केवल आत्म-कल्याण करनेके लिये यह 'सुधर्मध्यानप्रदीप' नामका प्रन्थ बनाया है ।।२०-२१॥ | मैं गवपि ध्यानकी बात भी नहीं जानता, न शब्दशाखको जानता हूँ, तो भी केवल अपने आत्माका कल्याण | करनेके लिये मैंने इधर-उधरसे लेकर शब्द जोड़ दिये हैं ॥२२॥ मेरे प्रमाद अथवा अल्पज्ञानसे इसमें PasixR5RIKSEXHEMAILRSHINESEXKAH-MARRI

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