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मु.प्र. ॥२१ ॥
PE समर्थः स्यात्कधं ननु ।।५।। बृहस्पतिगणशा न सम्यग्यक्तु कदापि ते। समर्था ध्यानमाहात्म्यं को वक्ति स्वल्पचेष्टया ॥५२।। ||
येन ध्यानेन चात्मा हि परमात्मा प्रजायते । का कथा यान्यसिद्धीन सतरा सा भवन्ति वा ॥५३॥ ध्यानेन सर्वसम्पत्तिलक्ष्मीनिन जायते । ऋद्धिः सिद्धिः समृद्धिर्वा महद्धिः सुतरी मधेत ५४|| इन्द्रनागेन्द्र वानां चक्रितीर्थकरात्मनाम् । संजायते पदं शीघ्र परमेश्वर्यकाराम ॥५५नश्यन्ते विपदः सर्वाः पलायन्ते हि सङ्कटाः । दुःखं दारिद्रयदुर्भाग्य नश्यन्ते तरक्षणास्वयम ॥५६|| अमाध्यः साध्यता यालि दुरादपि च योगिनाम् । ध्यानस्याचिन्त्यमहिमा सदा वाचामगोचरा ॥७॥ म्यात्महितप्रपिस्सूनां मुमुक्षण सुनिश्चितम् । ध्यानमक परं साध्य कर्म कलङ्कमुक्तये ॥५८|| चिन्तां त्यज भर्य मञ्च खेदं मा गा मनागप। ध्यानेनात्मन् च संसारं कर्मचक्रं हरिष्यसि ॥५६।। प्रास्नस्त्वमेव साक्षात्स परमात्मा निरञ्जनः । आचंत्य ई, लोकोत्तर है, फिर भला उसको कहने के लिये मेरे समान बालक कैसे समर्थ हो सकता है ? ॥५१|| | इस ध्यानकी महिनाको वृहस्पति भी नहीं कह सकते और गणधरदेव भी अच्छी तरह नहीं कह सकते हैं, फिर | भला बहुत थोड़ी चेष्टासे कौन कह सकता है ॥५२।। जिस ध्यानके प्रभावसे यह आत्मा परमात्मा हो जाता है ! | वहांपर अन्य सिद्धियोंकी तो बात ही क्या है ? अन्य समस्त सिद्धियां अपने आप सिद्ध हो जाती है ॥५३॥ इम || ध्यानसे ही समस्त संपनियां प्राप्त होती हैं, ध्यानसे ही लक्ष्मी प्राप्त होती है, तथा ऋद्धि, सिद्धि, समृद्धि और ||8| महाऋद्धियां इसी ध्यानसे अपने आप आ जाती हैं ||५४|| इसी ध्यानके प्रभावसे इन्द्र, नागेन्द्र, देव, चक्रवर्ती
और तीर्थकरोंके परम ऐश्वर्य उत्पन्न करनेवाले उत्तम पद शीघ्र ही प्राप्त हो जाते हैं ॥५५॥ इस ध्यान प्रभावसे मय विपत्तियां नष्ट हो जाती है, सब संकट भाग जाते हैं और दुःख, दारिद्रय, दुभंगता आदि उसी समय अपने आप नष्ट हो जाते हैं ॥५६॥ ईम ध्यानके प्रभावसे योगियों के असाध्य काय मी दसे ही सिद्ध हो जाते हैं । इस ध्यानकी महिमा अचिंत्य है और वाणीके अगोचर है ॥५७॥ जो योगी अपने प्रात्माका हित चाहते हैं और मोक्षकी इच्छा करते हैं, उनके कर्मरूपी कलंकोंको नाश करनेके लिये यह सुनिश्चितरूप
एक ध्यान ही परम साध्य है ।।५८॥ हे आत्मन् ! तू चिंता छोड़, भय छोड़ और थोड़ासा भी खेद मत All कर । तू इस ध्यानसे इस जन्म-मरणरूप संसारको और कमौके समूहको अवश्य नष्ट करेगा ॥५९।। हे आत्मन् !
इस ध्यानसे तू ही साक्षात् निरञ्जन परमात्मा हो जायगा। क्योंकि ध्यानके द्वारा यह आत्मा ही