Book Title: Sudharma Dhyana Pradip
Author(s): Sudharmsagar, Lalaram Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 215
________________ सु० प्र० ॥ २०० ॥ क | रुपातीतं मतं हि तत् ||८|| सर्वध्यानेषु मुख्यं तत् ध्यानमस्ति च सिद्धिदम् । परमात्मा भवेदारमा साक्षानेन यतः क्षणात् सिद्धा हि सर्वतो ज्येष्ठाः सर्वश्रेष्ठात्रिलोकतः । देवैर्योगीश्वरैः पूज्या भावातीता निरञ्जनाः ||१०|| निष्कल!: परमात्मानम्ते सन्ति कृतकृत्यकाः । शाश्वताः सुखम्पन्नाः शुद्धज्ञानधनाः शुभाः ||११|| विद्धानां ध्यानतरचात्मा साक्षात्सिद्धः प्रजायते । कृत्स्नकर्मक्षयं कृत्वा लववा च निज सम्पदाम् ||१२|| संसारः क्षीयतेऽनादिः रोगो नश्यति जन्मजः । तेन ध्यानेन जीवानां प्राप्यने निश्चलं सुखम ॥१॥ आगमनस्य योज्ञाता भावश्रुतेन चात्र वा रूपानीतम्य स ध्याता ध्यानस्येति तो जिनैः ॥ १४॥ अमृतं निष्कलं निजनम् । द्रव्यभावनी व सर्वगलापहम् ||१४|| व्याकारं निराकारं साकारं च प्रदेशतः । लोकमवामिनं चान्त्यशरीरात्किञ्चिदूनकम् || १६|| चिन्मयं शुद्धदर्शनात्मकमतम् । शुद्धसम्यक्त्व देदीप्तमन्यावाधमनाकुलम् ॥ १७ ॥ श्रनन्तवीर्य सम्पन्नमनन्तसुखसागरम् । अजरममर जन्मा हैं, सुखस्वरूप हैं, निद्र हैं और समस्त व्यापारोंसे रहित हैं। ऐसे सिद्ध परमेष्ठीका ध्यान करना रूपाती ध्यान कहलाता है ||७-८। यह रूवातीत ध्यान समस्त ध्यानों में मुख्य है, समस्त सिद्धियों को देनेवाला हैं और इससे यह आत्मा क्षणभर में साक्षात् परमात्मा हो जाता है ||९|| ये सिद्ध भगवान् तीनो लोकों में सबसे बड़े हैं, सबसे श्रेष्ठ हैं, देव और योगीश्वरोंके द्वारा पूज्य हैं, संसाररहित हैं, निरंजन है, शरीर रहित हैं, पर मात्मा हैं, कृतकृत्य है, नित्य हैं, अनन्त सुखी हैं, शुद्ध ज्ञानरूपी धनको धारण करनेवाले हैं और परम शुभ हैं। ऐसे भगवान् सिद्धौका ध्यान करनेसे यह आरा समस्त कमको नाश करके और अपनी आत्मरूप संपत्तिको प्राप्त करके साक्षात् सिद्ध हो जाता है ।। १०-११-१२। इन्हीं सिद्ध परमेष्ठियों के ध्यानसे यह अनादि संसार नष्ट हो जाता है, जन्म-मरणका रोग नष्ट हो जाता है और इसी रूपातीत ध्यानसे जीवों को मोक्षका निश्चल सुख प्राप्त हो जाता है || १३|| जो भावश्रुतज्ञानके द्वारा आगमके बारह अंगों का जानकार है, वही रूपातीत ध्यानको धारण कर सकता है, ऐसा भगवान् जिनेन्द्रदेवने कहा है || १४ || भगवान् सिद्ध परमेष्ठी अमूर्त हैं, शरीररहित हैं, परमदेव हैं, अव्यक्त हैं, निरंजन हैं, द्रव्य कर्म नोकर्म और भात्र कर्मसे रहित हैं, समस्त मलोंसे रहित हैं, अकाशके आकाररूप हैं, निराकार हैं, प्रदेशोंके द्वारा साकार हैं, लोक भा ॥ २०

Loading...

Page Navigation
1 ... 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232