Book Title: Sudharma Dhyana Pradip
Author(s): Sudharmsagar, Lalaram Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 205
________________ सु०प्र० चको नष्टो हि मूलतः । अईतायोगिनाथेन बम्मेऽहं तंसुभावतः ।।६।। जीवन्मुक्तोऽपि योगोश। निर्दोष: सर्व विच्छुचिः देवदेवेन वैः पूज्यः सोऽईन च पूज्यते मया ॥७॥ अईन् भगवन्तं तं पृज्येशं परमेश्वरम | ध्यायेञ्च ध्यानरूपरथे ध्याता चेकापचेतसा ॥ घातिकर्मविनिमक्त सकलं परमेष्ठिनम् योगीश्वरं महासाधं सिद्धयोगं निररूजनम् || योगातीतं महर्षि तं कृतकृत्यं महाप्रभुम् । सर्पयोगीश्वरैः पूज्यं ब्रह्मर्षि च यतीश्वरम् ॥१०॥ ध्यानीशं परमर्षितं स्नातकं च विकल्मम् । ऋद्धिवृद्धिसमृद्धयाग' नानद्धिभूषितं जिनम् ।.१|| अनन्तमहिमोपेतं सर्वविद्येश्वरं विभुम् । सर्वनरेन्द्र देवेन्द्रनागेन्द्रायश्च पूजितम् ।।१२।। संसारचक्रनिर्मस्तं जन्मातीतमजं शिवम् । धर्मचक्रप्रणेतारं कर्मचक्रविनाशकम् ॥१३॥ तुधादिदोषनिर्मक्त || मर्वमलनिराकृतम् । सप्तधातुविनिर्मक्त जरामरणदूरगम् ॥१॥ शुद्धस्फटिकसंकाशं दिव्यका मलातीतं पूत परमपावनम् ॥१५॥ दोपानीतं भवानीतं च्छातीत विकायकम् । निमोहं निर्मदं शान्तं निर्विकार निरखमूलसे नष्ट कर दिया है, ऐसे अरहतदेवको मैं नमस्कार करता हूं ॥६॥ जो अरहंतदेव जीवन्मुक्त हैं, योगियोंके | स्वामी हैं, निर्दोष हैं, सर्वज्ञ हैं, पवित्र हैं और देव इन्द्र नरेन्द्र आदिके द्वारा पूज्य हैं, ऐसे भगवान् अरइंत- 15 देवकी मैं पूजा करता हूं ॥७॥ ध्यान करनेवालेको एकास मनसे रूपस्थ ध्यानमें मब पूज्यों के स्वामी परमेश्वर भगवान् अरहंतदेवका ध्यान करना चाहिये ॥८॥ भगवान अहं तदेव घातक कर्मोंसे रहित हैं, शरीरमहिन हैं, परमेष्ठी हैं, योगीम्बर हैं, महासाधु हैं, सिद्धयोग हैं, निरंजन हैं, योगरहित हैं, महर्षि हैं. कृतकृत्य है, महाप्रभु हैं, समस्त योगीश्वरों के द्वारा एज्य हैं, ब्रह्मर्पि है, यतीश्वर है, थ्यानियों के ईश्वर हैं, परम ऋषि है, स्नातक हैं, कर्ममलसे रहित हैं, ऋद्धि, वृद्धि और समृद्धियोंसे सुशोभित हैं, अनेक ऋद्धियोंसे विभूषित हैं, जिन ! हैं, अनंत महिमाको धारण करते हैं, ममस्त विद्याओंके ईश्वर है, विभु हैं, समस्त नरेन्द्र, देवेन्द्र और नागेन्द्र l आदिके द्वारा पूज्य हैं, संसारचक्रसे रहित है, जन्म-मरण रहित हैं, अज है, शिव हैं, धर्म है, धर्मचक्रको निरूपण करनेवाले हैं, कर्मचक्रको नाश करनेवाले हैं, क्षुधा तृषा आदि दोपोंसे रहित हैं, गगद्वेषादिक समान कल्मषोंको दूर करनेवाले हैं, सप्त धातुओंसे रहित है, बुढ़ापा-मरण आदिसे दूर हैं, शुद्ध स्फटिकके मनान हैं. | अथवा दिव्य सुवर्णके समान हैं, अंतरङ्ग बहिरङ्ग मलोंसे रहित हैं, पवित्र है, परम पवित्र हैं, दोषरहित हैं, | संसारसे रहित हैं, चेष्टासे रहित हैं, शरीररहित हैं, मोहरहित हैं, मदरहित हैं, शांत हैं. विकाररहित है,

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