Book Title: Sudharma Dhyana Pradip
Author(s): Sudharmsagar, Lalaram Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 208
________________ Po० . . . ॥१८॥ 12543REM S) सत्यसत्यप्रणेतारं मिध्यामतविनाशकम् । भ्रमादिदोषनिर्मुक्त प्रत्यक्षीकृजगत्त्रयम् ॥३८॥ एतादृशं हि चाहन्तं ध्याये. संचिन्तयेत्सुधीः । पूजयेत्सुजपेद्धत्तया स्मरेद्वा तदरणाप्तये ॥३॥ धर्मध्यानबलेनात्र जिनामति विचितयेत । ध्याता स्वात्म संकल्प्य हहन्तं दिव्यतेजसम् ॥४०॥ ध्यायेत्तद्गुणसंकीर्त्या स्वात्मानं जिनभावतः । जिनश्चात्मा जिनश्चात्मा स्वात्मैष सजिनो जिनः ॥४शा जिन एव भवेदात्मा तस्मादात्मा जिनो मतः सर्वदोषवि मान्मानं मन्यते जिनम् । ४।। भावयेद्भावभत्स्या तं तादात्मा स्याजिना ध्रुवम् । तस्मात्तद्गुणसंकीर्त्या श्रद्धया बा जपेजिनम् ॥४३॥ प्रतिविम्यं जिनेन्द्रम्य पान्तः | शाणादिनायो । बा ६८.. हितं ध्यायेदेकाममनसाऽनिशम् ॥४४॥ अईतश्च गुणन्धृत्वा तत्रैव चिन्तयेत्पुनः । अर्हता | हैं, आदि, मध्य और अंतसे रहित हैं, वर्द्धमान हैं, सनातन हैं, यथार्थ प्रमाणभूत हैं, उनका शरीर दयासे सुशोभित 3 है, सत्य सत्य भाषाको निरूपण करनेवाले हैं, मिथ्या मतको नाश करनेवाले हैं, भ्रम आदि दोषोंसे | | रहित हैं और तीनों लोकोंको प्रत्यक्ष देखनेवाले हैं, ऐसे भगवान् अरहंतदेवका बुद्धिमान मन्य जीवोंको | उनके गुण प्राप्त करनेके लिये ध्यान करना चाहिये, उनका चितवन करना चाहिये, उनकी पूजा करनी | चाहिये, उनका जप करना चाहिये और उनका स्मरण करना चाहिये ।।३५-३९॥ ____ आगे इस ध्यानके चिंतवन करनेका उपाय बतलाते हैं। सबसे पहले धर्मभ्यानके बलसे भगवान् जिनेन्द्रदेवके | आकारका चितवन करना चाहिये। ध्यान करनेराले ध्याताको अपने आत्मामें दिव्य तेजको धारण करनेवाले भगवान अरहंतदेवका संकल्प करना चाहिये और फिर अपने आत्माको जिनेन्द्ररूप समन कर उनके गणोंका कीर्तन करते हुए उनका ध्यान करना चाहिये। ये जिनेन्द्रदेव ही मेरा आत्मा है, जिनराज ही मेरा आत्मा है, अथवा मेरा आत्मा ही जिन है, जिन है, यह आत्मा ही जिनेन्द्र हो जाता है। इसलिये आत्मा ही जिनेन्द्र माना || जाता है । इसप्रकार जब अपने आत्माको समस्त दोषोंसे रहित जिनेन्द्र ही मानता है, तथा भाव-भक्तिसे उसका चितवन करता है, तब आत्मा अवश्य ही जिन हो जाता है। इसलिये ध्यान करनेवालेको श्रद्धापूर्वक अरहंत | Ma देवके गुणोंका संकीर्तन करते हुए जिनेन्द्रदेवका जप करना चाहिये ॥४०-४३॥ अथरा ध्यान करनेवालेको | अपने हृदयके मीतर भगवान् जिनेन्द्र देवके प्रतिबिंबका स्थापन करना चाहिये और फिर एकाग्र मनसे हित ०प्र०१५ HIKSHARMAHARASHTRAMAYASKHESARIYAR

Loading...

Page Navigation
1 ... 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232