Book Title: Sudharma Dhyana Pradip
Author(s): Sudharmsagar, Lalaram Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 202
________________ मु. प्र० ॥१८॥ अमARCHRISHAIR ANSAR भाक् || जिन एवं भवाम्भोधौ तारको भवहारकः । तस्मान्जिनं जिनं भक्तधा जपेच शुद्धभावतः || जिनो देवो जिनो देवो देवदेवः जिनो जिनः। जिनो एव सदा ध्येयो बन्यो पूज्यश्च तारकः || जिनं जिनं जिनं चात्मन् स्मर चिन्तय भावय । प्राणै कण्ठगतैश्चापि जातु विस्मर मा जिनम् ॥१०॥ श्रद्धया परया भक्त्या शुद्धया च शुद्धभावतः । यः स्मरति जिनं देयं म जति समष्टिक .It सापय कु.प में विभुत्ति जनो भुवि : यावन्न हि जिमो दृष्टोऽनन्तशक्तिप्रधारकः ।।। जिन एव महादेवो जिन ईश्वर उच्यते। जिनो हि परमात्मासौ जिनो ब्रह्मा शिवो मतः ।।३।। तस्मात्सर्वप्रयत्नेन सर्वकार्येषु सर्वदा । ध्यातव्यः श्रीजिनो नित्यं शुद्धभावेन धीमता IEAN कायव्यापारक गध्वा चान्तर्जस्पेन योगिभिः । शनैः शनैः | परो मन्त्रो ध्यातव्यश्च सुखेप्सया ।।६.५! त्यक्त्वान्या सर्वचिन्वा हि चैकाममनसात्र वा। एक मंत्रपदं ध्येयं शुद्धोश्चारण. है, जबतक कि शांतयोगको धारण करनेवाले भगवान् जिनेन्द्रदेवके दर्शन नहीं होते ॥८७।। इस संसाररूपी समुद्र में भगवान् जिनेन्द्रदेव ही संसारको नाश करनेवाले हैं और संसारसे पार कर देनेवाले हैं, इमलिये का भक्तिपूर्वक शुद्धभावोंसे जिन चा जिनेन्द्रदेवका जप करना चाहिये ।।८८॥ भगवान् जिनेन्द्रदेव ही देव है | | जिनेन्द्रदेव ही देव हैं, देवोंके देव जिन ही हैं, जिन ही हैं। भगवान् जिनेन्द्रदेव ही ध्यान करने योग्य हैं, बंदना करने योग्य हैं, पूज्य हैं और संसारसे पार कर देनेवाले हैं ॥८९।। हे आत्मन् ! तू भगवान जिनेन्द्रदेवका | चितवन कर. भगवान जिनेन्द्रदेवका स्मरण कर और भगवान् जिनेन्द्रदेवकी भावना कर । कंठगत प्राण होने पर भी तू भगवान् जिनेन्द्रदेवको मत भूल ॥९०॥ जो पुरुष परम श्रद्धा, परम भक्ति, शुद्धता और शुद्ध भावपूर्वक भगवान् जिनेन्द्रदेवका स्मरण करता है और उनका जप करता है, उसे श्रेष्ठ सम्यग्दृष्टि समझना ali चाहिये ॥९॥ यह जीन डन संसारमें तभीतक धर्ममें मोहित होता है. जबतक कि अनंत शक्तिको धारण करनेवाले भगवान् जिनेन्द्रदेवके दर्शन नहीं होते ॥९२॥ भगवान् जिनेन्द्रदेव ही महादेव हैं, जिनेन्द्रदेव ही ईश्वर हैं, जिनेन्द्रदेव ही परमात्मा है, जिनेन्द्रदेव ही ब्रह्मा हैं और भगवान् जिनेन्द्रदेव ही शिव हैं ॥९३॥ | इसलिये बुद्धिमान भव्य जीवोंको सब तरह के प्रयत्न करके समस्त कार्योंमें शुद्धभावोंसे सदा भगवान् जिनेन्द्रदेव का ही ध्यान करना चाहिये ॥९४|| बोगियोंको सुखकी इच्छासे शरीरके व्यापारको रोककर अंतःकरणमें जप करते हुए धीरे धीरे इस सर्वोत्कृष्ट मंत्रका ध्यान करना चाहिये ।।९५॥ अन्य समस्त चिंताओंको छोड़कर

Loading...

Page Navigation
1 ... 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232