Book Title: Sudharma Dhyana Pradip
Author(s): Sudharmsagar, Lalaram Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 169
________________ सु. प्र. मा० उपायो मोक्षमार्गस्य जिनधर्मः स एव हि । पुरा तेनैव मोक्षं च गतास्तीर्थकरादयः ।।६।। गमिष्यन्तीह तेनैव जिनधर्मेण धार्मिकाः । जिनधर्मस्य जीवानां प्राप्तिः म्याच कथं मनु ८७|| केनोपायम वा तेषां तदुपायस्य चिन्तनम् । तदुपायाभिधं ध्यानं मोक्षमार्गस्य दीपकम् ।।८।। कीदशैः सदुपाया सडूम मे मतिमंवत । तेषां हि सदुपायानां चिन्तनं वा विचारणम ॥८६॥ येन येन विचारेण याभिर्याभिः क्रियादिभिः । सुदृग्योधनतादीनां हानः स्यादात्मनो यदि 10! तेषां तत्र निरासाथ चित्तैकाप्रनिरोधतः । चिन्तन शुद्धभावन तदपायस्य यत्पुनः ६१|| अपार्यावचयं ध्यान सर्वपापनिवारकम् । कथित श्रीजिनेन्द्रेण शिवाय दुःखहानये ॥१२॥ अतिविषयकुमार्गे भ्राम्यमाणे वराकः सहजकुमतिशिक्षाप्रेर्यमाणोऽन्धजीवः । जननमरणदुःखं दारुणं संचिनोति इह तदपि सुधर्म नैव प्राप्नोति भत्त्या ||३|| इति सुधर्मध्यानप्रदीपालंकार अपायविषयध्यानप्ररूपणो नाम अष्टादशोऽधिकारः । गीमार्मिक पुरुष इसी जैनर्णसे मोक्ष जायेंगे. उस जैनधर्मकी प्राप्ति इन जीवोंको किस उपायसे और किस प्रकार होगी? इसप्रकार जैनधर्मकी प्राप्तिके उपायोंका चिन्तवन करना मोक्षमार्गको दिखलाने के लिये दीपकके - समान उपाय विचय नामका धर्मध्यान कहलाता है ॥८६-८८।। अथवा ऐसे कौनसे उपाय हैं ? जिनसे मेरी बुद्धि श्रेष्ठ धर्ममें लीन हो जाय, इसप्रकार उन उपार्योका चिन्तवन वा विचार करना भी उपायविचय नामका धर्मध्यान है ।।८९il जिन जिन विचारोंसे वा जिन जिन क्रियाओंसे सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान वा सम्यक्चारित्र वा आत्माके गुणोंकी हानि होती हो, उन विचारों वा क्रियाओंका दूर करनेके लिये अन्य सब चिन्ताओंको रोककर शुद्ध भावोंसे बार बार चितवन करना समस्त पापोंको रोकनेवाला अपायविचय नामका धर्मध्यान है, इसीसे समस्त दुःख दूर होते हैं और इसीसे मोक्षकी प्राप्ति होती है, ऐसा | | भगवान् जिनेन्द्रदेवने कहा है ॥९०-९२॥ अज्ञानजनित स्वभाक्से उत्पन्न होनेवाली कुदुद्धि और कुशिक्षासे प्रेरित हुआ यह दीन और अन्धा जीव विषय-कुमागमे अत्यन्त परिभ्रमण करता हुआ जन्म-मरणके दारुण दुःखोंको इकट्टा करता रहता है तो भी भक्तिपूर्वक इस श्रेष्ठ धर्मको कमी धारण नहीं करता ॥९३॥ इसप्रकार मुनिराज श्रीसुधर्मसागरविरचित सुधर्मध्यानप्रदीपालङ्कारमें अपायविघयनामक धर्मध्यानको निरूपण करनेवाला यह अट्ठारहवां अधिकार समाप्त हुआ।

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