Book Title: Sudharma Dhyana Pradip
Author(s): Sudharmsagar, Lalaram Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 175
________________ जडो मूर्तो जातोऽहं पररूपकः॥४७|| त्रिलोकदर्शिका शक्तिनष्टानेकर्मयोगतः नष्ट मेऽनन्तविज्ञानं चराचरप्रकाशकम् ।।८।। सु०प्र० नष्ठी मेऽनन्तवीर्योऽसौ जगदाश्चर्यकारकः । पूर्णस्वाधीनमात्मोत्थमनन्नमविनश्वरम् ||४| नष्टं मे तलमुखं हा हा कवि॥१६॥ पाकतोऽधुना । अव्यावाधत्वशक्तिर्म नष्टा हा चित्स्वरूपिका ॥४०॥ कर्मणामुदयं तस्माद्धे ध्यानाग्निनाऽधुना । कर्मोदयं हि रुध्वा वा स्वतन्त्रो हि भवाम्यहम् ॥५१|| तदर्थं चिन्तनं चैकाप्रचिन्तारोधपूर्वकम् । कर्मविपाकजं तद्धि ध्यान कर्म | विनाशनम् ॥५२|| यथा यथा हि योगी स ध्यायति कर्मणां फलम् । तथा तथा स संसाराद्विभेति लभते शिवम् ॥४३॥ | कर्मणां हि विपाक वा चिन्तयन् स पुनः पुनः । यतते चात्मशुद्धार्थ ध्यानाध्ययनकर्मसु ॥५४॥ कर्मविपाकजं ध्यान ध्यातं तीर्थकरैरपि । गणधरैरपि ध्यातं कर्मनि शहेतवे ॥५५|| कर्मविपाकजाद्ध्यानानश्यन्त कर्मशत्रवः । लभ्यते है, वह अवश्य ही मोक्षको प्राप्त होता है ।।४३-४६।। यद्यपि मैं शुद्धस्वरूप हूं तथापि कर्मके उदयद्वारा अनादि || कालसे जड़, मूर्त और पररूप हो रहा हूं। इसी कर्मके निमित्तसे तीनों लोकोंको दिखलानेवाली मेरी शक्ति R| नष्ट हो गई है और चर-अचरको प्रकाशित करनेवाला मेरा अनन्त ज्ञान नष्ट हो गया है । इस कर्मके उदयसे | | जगत्को आश्चर्य उत्पन्न करनेवाला मेरा अनंत वीर्य नष्ट हो गया है तथा आत्मासे उत्पन्न हुआ पूर्ण स्वाधीन | और कभी न नाश होनेवाला अनंत सुख मी इसी कर्मके उदयसे नष्ट हो गया है । इसी कर्मके उदयसे मेरी चैतन्यस्वरूप अन्यावाध शक्ति नष्ट हो गई है। इसलिये अब मैं ध्यानरूपी अग्निसे कर्मों के उदवको रोदूंगा 15 और कौके उदयको रोककर स्वतंत्र हो जाऊंगा । इसप्रकार अन्य समस्त चिन्तनों को रोककर एकाग्र मनसे कर्मोके उदयके रोकनेका चिन्तवन करना कोको नाश करनेवाला विषाकविषय नामका धर्मध्यान कहलाता | है ॥४७-५२॥ यह योगी जैसे जैसे कोंके उदयका चिन्तवन करता रहता है, वैसे ही वैसे संसारसे भयभीत का होता है और मोक्षको प्राप्त करता है ॥५३॥ काँके उदयको बार बार चितवन करता हुआ वह योगी अपने आत्माको शुद्ध करनेके लिये ध्यान अध्ययन आदि कार्यों में सदा प्रयत्न करता रहता है ॥५४॥ कर्मों के विषाकसे उत्पन्न हुआ यह विपाकविचय ध्यान पहले तीर्थंकरोंने भी धारण किया है और कर्मोंका नाश करनेके लिये गणधर देवोंने इसे भी धारण किया है ॥५५॥ कमांक उदयसे उत्पन्न हुए इस विपाकविचय धर्मध्यानसे - कर्मरूप सप शत्रु नष्ट हो जाते हैं, मोक्षका सुख प्राप्त हो जाता है और महान् आनन्द प्रगट होता है RAHINEKHIYASERIAAAAAYATIMERRIER

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