Book Title: Sudharma Dhyana Pradip
Author(s): Sudharmsagar, Lalaram Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 172
________________ -५ १५७ ॥ अनन्तकालतो जीवो नानायोनौ हि पर्यटन् । नान किंचित्सुख लेभे कर्मणां दुर्विपाकतः॥१८|| खिद्यते ताम्यति ध्येति जायते परिनृत्यति । रौति मृच्छति जीवोऽयं कर्मणामुदये सति ।।१६।। काम्यति युध्यते शेने हिनस्ति क्रुध्यति स्वयम् । रज्यति मुखवि द्वेष्टि कर्मोदयादयं जनः ॥२०॥ धावति बल्गति स्तौति निन्दति पापतः फ्रान् । हर्षति रोचते पुण्याज्जीव कर्मोदयादिह ॥२१॥ चतुर्गतौ च संसारे नानावेषं च धारयन् । कर्मणामुदयाजीवो नाट्य इत्र नटायते ॥२२।। पिता भवति पुत्रोऽसौ पुत्रः पित्रायतेतराम् । राजा भवति मार्जारः श्वा देवोऽपि च जायते ॥२३।। अतिभीमेऽत्र संसारे कर्मणामु. दयादिह । सर्वत्र सर्वभावेन जीवो नृत्यति लीलया ॥२४॥ सुखं न जायते जीवस्याल्पकर्मोत्यादिह । दुःखरूपे च संसारे दुःखमेव हि जायते ।।२५।। जलबुद्बुदसादृश्यं सुखं किंचिच्च दृश्यते । कृतकर्मविपाकाय दुःखस्य कारणं हि तत् ।।२६।। दुःखमयेऽत्र संसारे कर्मोदयात्सुतंत्रिते । जन्ममृत्युभवं दुःखं जीवः प्राप्नोति दारुणम् ।।२७॥ कर्मोदयः म | | परंतु कर्मोंके अशुभोदयसे इसको रंचमात्र भी सुख प्राप्त नहीं हुआ है ॥१८॥ कर्मोके उदय होनेपर यह जीव खेदखिन होता है, दुःखी होता है, नष्ट होता है, उत्पन्न होता है, नृत्य करता है, रोता है और मृच्छोको | प्राप्त होता है ।।१९।। इसी कर्मस उदयसे यह जीव इच्छा करता है, लड़ता है, सोता है, हिंसा करता है, क्रोध करता है, राम करता है, मोह करता है और द्वेष करता है ॥२०॥ यइ जीव पाप कर्मोके उदयसे दौड़ता है, | चकता है, दूसरेकी निन्दा करता है वा स्तुति करता है, अथवा पुण्यकर्मके उदयसे प्रसन्न होता है वा रुचि हा करने लगता है ॥२१॥ कर्मों के उदयसे यह जीव चतुर्गतिरूप संसारमें अनेक मेषोंको धारण करता हुआ नाट्यशालामें नटके समान नाचता रहता है ॥२२॥ कर्मोंके उदयसे अत्यन्त भयानक इस संसारमें यह जीव पितासे पुत्र हो जाता है, पुत्रसे पिता हो जाता है, राजासे बिल्ली हो जाता है और कुत्तासे देव हो जाता है। इसप्रकार यह जीव सब जगह और सब मासे लीलापूर्वक नृत्य किया करता है ।।२३-२४।। | इन कर्मोके उदयसे इस जीवको थोडासा भी सुख प्राप्त नहीं होता । यह संसार दुःखरूप है, इसलिये इसमें सदा all दुःख ही दुःख प्राप्त होता रहता है ॥२५॥ किये हुए कर्मोके उदयसे यदि पानीके बुद्दाके समान थोड़ी देर तक टिकनेवाला थोडासा सुख दिखाई देता है, तथापि वह आगामी दुःखोंका ही कारण होता है | ॥२६॥ कर्मोके उदयके वशीभूत होनेवाले और दुःखमय इस संसारमें यह जीव जन्म-मरणसे उत्पन KIWARIWARISMISSIKARISHRSHISEXKARISERIKA

Loading...

Page Navigation
1 ... 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232