Book Title: Sudarshan Charit
Author(s): Udaylal Kashliwal
Publisher: Hindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay

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Page 8
________________ मङ्गल और प्रस्तावना | [ ३ वे गौतमादि गणधर ऋषि मेरे कल्याणके बढ़ानेवाले हों, जो सब ऋद्धि और अंगशास्त्ररूपी समुद्रके पार पहुँच चुके हैं - जो बड़े भारी सिद्ध-योगी और विद्वान् हैं तथा बाह्य और अन्तरंग परिग्रह रहित हैं। उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ । उन गुरुओंके चरण कमलोंको नमस्कार है, जिनकी कृपासे मुझे उन सरीखे गुणोंकी प्राप्ति हो तथा जो परिग्रह रहित और उत्तम गुणोंके धारक हैं । जिनदेव, गुरु और शास्त्रकी मैंने वन्दना - स्तुति की और जिनकी स्वर्ग देव और चक्रवर्त्ती आदि महा पुरुष वन्दना - स्तुति करते हैं वे सब सुखों के देनेवाले या संसारके जीवमात्रको सुखी करनेवाले देव, गुरु और शास्त्र मेरे इस आरंभ किये ग्रन्थमें आनेवाले विघ्नोंको नाश करें, सुख दें और इस शुभ कामको पूरा करे । वैश्य कुल भूषण श्रीवर्धमानदेवके कुलरूपी आकाशके जो सूर्य हुए, सब पदार्थोके जाननेवाले पाँचवें अन्तः कृतकेवली हुए, सुन्दर शरीरधारी कामदेव हुए और घोरतर उपसर्ग जीतकर जिन्होंने संसार पूज्यता प्राप्त की उन सुदर्शन मुनिराजका यह पवित्र और भव्यजनोंको सुख देनेवाला धार्मिक भावपूर्ण चरित्र लिखा जाता है। इससे सबका हित होगा। मैं जो इस चरितको लिखता हूँ वह इसलिए कि इसके द्वारा स्वयं मेरा और भव्यजनोंका कल्याण हो और पंचनमस्कार मंत्र का प्रभाव विस्तृत हो । इसे सुनकर या पढ़कर भव्यजनोंकी पंच परमेष्ठिमें श्रद्धा पैदा होगी, ब्रह्मचर्य आदि पवित्र व्रतोंके धारण करनेकी भावना होगी, संसारविषय-भोगों उदासीनता होगी और वैराग्य बढ़ेगा ।

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