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सुदर्शनकी युवावस्था।
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अत्यन्त खुशी है कि मेरा किया संकल्प आज पूरा होता है। आपको स्मरण होगा कि मैंने आपसे कहा था कि मैं अपनी लड़कीकी शादी आपके पुत्रके साथ करूँगा। बह समय उपस्थित है और खास उसी लिए मैं आज आपसे प्रार्थना करने आया हूँ। आशा है, नहीं विश्वास है--आप मेरी नम्र प्रार्थना स्वीकार करेंगे । यह सुनकर सुदर्शनके पिताने कहा-प्रियमित्र, जैसा मेरा सुदर्शन सुन्दर और गुणी, वैसी ही आपकी मनोरमा सुन्दरी और विदुषी, भला तब कहिए इस मणि-कांचन संयोगका कौन न चाहेगा। इसके बाद ही उन्होंने श्रीधर नामके एक अच्छे ज्योतिषी विद्वान्को विवाहका शुभ दिन पूछनेका बुलाया । ज्योतिषी महाशयने तब अपने पोथी-पाने देख कर ब्याहका शुभ दिन बतलाया-बैसाख सुदी पंचमी । वही दिन निश्चय कर वृषभदास और सागरदत्तने ब्याहका काम-काज भी शुरू कर दिया। दोनोंके यहाँ अच्छे मंडप तैयार किये गये । सुबह और शामको नौबतें झड़ने लगीं। खूब उत्सव किया गया । जो दिन ब्याहके लिए निश्चित था, उस दिन पहले ही दोनों सेठोंने जिनमन्दिर जाकर बड़े ठाट-बाटसे जिनभगवान्की अभिषेकपूर्वक पूजा की । इसलिए कि उनका विवाहोत्सव निर्विघ्न पूरा हो—कोई प्रकारका विघ्न न आवे और सब सुखोंकी प्राप्ति हो। इसके बाद उन्होंने अपने बन्धु-बान्धवोंको बहुमूल्य वस्त्रा भूषण आदि भेंटकर उनका उचित आदर-सम्मान किया । अविरत होनेवाले गीत-नृत्य-संगीत आदिसे उनका घर उत्सवमय बन गया। जिधर देखो उधर ही उत्सव-आनन्द दिखाई पड़ने लगा।