Book Title: Sudarshan Charit
Author(s): Udaylal Kashliwal
Publisher: Hindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay

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Page 46
________________ सुदर्शन संकटमें । [ ४१ नौकर-चाकरोंकी तरह चरणोंकी सेवा करने लगते हैं और सब विघ्न-बाधायें नष्ट हो जाती हैं। जो सच्चे शीलवान् हैं उन्हें देव, दानव, भूत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी आदि कोई कष्ट नहीं पहुँचा सकता । तब बेचारे मनुष्य - नृकीटकी तो बात ही क्या ? वह कौन गिनती में ? सुदर्शनने जो दृढ़ शीलवतका पालन किया उसके माहात्म्यसे एक यक्षने उसके सब उपसर्ग - सत्र विन्न क्षणमात्रमें नष्ट कर उसकी पूजा की । इसका मतलब यह हुआ कि शीलके प्रभावसे दुःख नष्ट होते हैं और सब प्रकारका सुख प्राप्त होता है । तब भव्यजनो, अपनी आत्मशुद्धिके लिए इस परम पवित्र शीलत्रतको दृढ़ता के साथ तुम भी धारण करो न, जिससे तुमको सब सुखोंकी प्राप्ति हो । देखो, यह शील मुक्तिरूपी स्त्रीको बड़ा प्रिय है और संसारके परिभ्रमणको मिटानेवाला है। जो सुशील हैं--सत्पुरुष हैं वे इस शीलधर्मको बड़ी दृढ़तासे अपनाते हैं--इसका आश्रय लेते है, शीलधर्मसे मोक्षका सुख मिलता है । उस पवित्र शीलधर्मके लिए मैं नमस्कार करता हूँ । शीलके बराबर कोई सुधर्मको प्राप्त नहीं करा सकता । जहाँ शील है समझो कि वहाँ सब गुण हैं । और हे शील, मैं तुझमें अपने मनको लगाता हूँ, तू मुझे मुक्ति में ले चल । उन मुनिराजोंकी मैं स्तुति करता हूँ जो पवित्र बुद्धिके धारी और शीलत्रतरूपी आभूषणको पहरे हुए हैं, इन्द्र, चक्रवर्ती आदिसे पूज्य और काम शत्रुके नाश करनेवाले हैं, स्वयं संसार - समुद्रसे

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