Book Title: Sudarshan Charit
Author(s): Udaylal Kashliwal
Publisher: Hindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 45
________________ ४० । सुदर्शन-चरित। और प्राणदंड ? यह कभी संभव नहीं कि तू ऐसा भयंकर पाप करे । पर जान पड़ता है दैव आज तुझसे सर्वथा प्रतिकूल है । इसीलिए तुझे यह कठोर दंड भोगना पड़ेगा। सुदर्शन, लेजाकर मृत्यु स्थानपर खड़ा किया गया। इतनेमें एक जल्लादने उसके कामदेवसे कहीं बहकर सुन्दर और फूलसे कोमल शरीरमें तलवारका एक वार कर ही दिया । पर क्या आश्चर्य है कि उसके महान् शीलधर्मके प्रभावसे वह तलवार उसके गलेका एक दिव्य हार बन गई। इस आश्चर्यको देखकर उग जल्लादको अत्यन्त ईर्वा बढ़ गई। उस मूर्खने तब एकपर एक ऐसे कोई सैकड़ों वार सुदर्शनके शरीरपर कर डाले। पर धन्य सुदर्शनके व्रतका प्रभाव, जो वह जितने ही वार किये जाता था वे सब दिव्य पुष्पमालाके रूपमें परिणत होते जाते थे। इतना सब कुछ करने पर भी सुदर्शनको कोई किसी तरहका कष्ट न पहुँचा सका। उधर सुदर्शनकी इस सुदृढ़ शील-शक्तिके प्रभावसे देवोंके सहसा आसन कम्पायमान हो उठे। उनमेंसे कोई धर्मात्मा यक्ष इस आसनकम्पसे सुदर्शनपर उपसर्ग होता देखकर उसे नष्ट करनेके लिए शीघ्र ही मृत्यु-स्थलपर आ उपस्थित हुआ और उस शरीरसे मोह छोड़े महात्मा सुदर्शनको वार वार नमस्कार कर उसने उन मारनेवालोंको पत्थरके खंभोंकी भाँति कील दिया। सच है शीलके प्रभावसे धर्मात्मा पुरुषोंको क्या क्या नहीं होता। और तो क्या पर जिसका तीन लोकमें प्राप्त करना कठिन है वह भी शीलवतके प्रभावसे सहसा पास आ जाता है । इस शीलके प्रभावसे देवता लोग

Loading...

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52