Book Title: Sudarshan Charit
Author(s): Udaylal Kashliwal
Publisher: Hindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ सुदर्शन संकटमें। २५ स्त्रीने, जो कि कामके बाणोंसे बहुत ही कष्ट पा रही थी, अपनी एक सखीको बुलाकर कहा--सखि, सुदर्शनको मैं बहुत ही प्यार करती हूँ। मैं नहीं कह सकती कि उसके बिना मेरे प्राण बच सकेंगे या नहीं। इसलिए मैं तुझसे प्रार्थना करती हूँ कि तू जिस तरह बने सुदर्शनको मेरे पास ला । वह तब दौड़ती हुई जाकर सुदर्शनसे बोली-कुँअरजी, आप तो ऐसे निर्दयी होगये जो अपने मित्र तककी खबर नहीं लेते कि वह किस दशामें है ? उनकी आज कई दिनोंसे आँखें बड़ी दुखती हैं। उससे वे बड़े कष्टमें हैं। भई, न जाने आप कैसे मित्र हैं जो उनकी बात भी नहीं पूछते । सुदर्शनने कहा-मुझे इस बातकी कुछ खबर नहीं । नहीं तो भला ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं उनके पास न आता । यह कहकर सुदर्शन कपिलके घर पहुँचा । उसे मालूम न था कि कपिल कहाँ है। उसने कपिलाकी सखीसे पूछा-मित्र कहाँपर है ? उसने झूठे ही सुदर्शनसे कह दिया-वे ऊपर सोये हुए हैं। आप अपनी इस मंडलीको यहीं बैठाकर अकेले जाइए। सुदर्शनने वैसा ही किया। अपने मित्रोंको वह नीचे ही बैठाकर आप बड़े प्रेमसे मित्रके मिलनेकी इच्छासे ऊपर पहुँचकर एक सुन्दर सजे हुए कमरेमें दाखिल हुआ। इधर कामुकी कपिलकी स्त्री सखीके जाते ही अपनी सेनपर, जिसपर कि एक बहुत कोमल और शरीरमें गुदगुदी पैदा करनेवाला गदेला बिछा हुआ था, जा सोई और ऊपरसे उसने एक बारीक कपड़ा मुँहपर डाल लिया।

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52