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सुदर्शन-चरित। चकाचौंध किये देती है, वह रथमें बैठी हुई सुन्दरी कौन है? और किस पुण्यवान्का समागम पाकर वह सफल-मनोरथ हुई है ? उनमेंसे किसी एक सखीने कहा-महारानीजी, आप नहीं जानती, यह अपने राजसेठ सुदर्शनजीकी प्रिया और गोदमें बैठे हुए उनके पुत्र सुकान्तकी माता मनोरमा है। यह सुनकर रानीने एक लम्बी साँस लेकर कहावह माता धन्य है, जो ऐसे सुन्दर पुत्र-रत्नकी माता और सुदर्शनसे खूबसूरत युवाकी पत्नी है। इसपर कपिलाने कहा-पर महारानीजी, मुझे तो किसीने कहा था कि सुदर्शन सेठ पुरुषत्व-हीन हैं, फिर भला उनके पुत्र कैसे हुआ ? रानी बोली-नहीं कपिला, यह बात बिल्कुल झूठी है। सुदर्शनसा धर्मात्मा कभी पुरुषत्व-हीन नहीं हो सकता । किन्तु जो अत्यन्त पापी होता है, वही पुरुषत्व-हीन होता है, दूसरा नहीं। किसी दुष्टने सुदर्शनके सम्बन्धमें ऐसी झूठी बात तुझसे कहदी होगी। कपिला बोलीमहारानीजी, मैं जो कुछ कहती हूँ वह सब सत्य है । और तो क्या, पर यह घटना स्वयं मुझपर बीती है । मैं आपसे सच कहती हूँ कि मेरा सुदर्शनपर बड़ा अनुराग होगया था। एक दिन मौका पाकर मैंने उससे प्रेमकी प्रार्थना की; पर उसने स्वयं अपनेको पुरुषत्वहीन बतलाया तब मुझे उससे बड़ी नफरत होगई । रानीने फिर कहा-कपिला, बात यह है कि वह बड़ा धर्मात्मा मुस्म है । पापकी बातोंकी, पापकी क्रियाओंकी जहाँ चर्चा हो वहाँ तो वह जाकर खड़ा भी नहीं रहता। यही कारण था कि तुझे उस बुद्धिमान्ने ऐसा उत्तर देकर ठग लिया । यह सुन दुष्ट कपिलाको सुदर्शनसे बड़ी ईर्षा हुई।