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सुदर्शन संकटमें।
[ ३३ दिया। वह उसके पाँवोंमें पड़कर गिड़गिड़ाने लगा-रोने लगा। मा, क्षमा करो-मुझ गरीबपर दया करो। आज पीछे मैं कभी आपके काममें किसी प्रकारकी बाधा न दूंगा। मा, क्रोध छोड़ो-मेरे बालबच्चोंकी रक्षा करो। इस प्रकार कूट-कपटसे उस बेचारेको जालमें फँसाकर उसने अपनी मुटीमें कर लिया। अपने प्रयत्नमें सफलता हो जानेसे उसे बड़ा आनन्द हुआ। वह उस दिन बड़ी प्रसन्नताके साथ अपने घर गई। इसी उपायसे उसने और भी छह पहरेदारोंको छह रातमें अपने कावूमें कर लिया । ____ यह पहले लिखा जा जुका है कि पुण्यात्मा सुदर्शन अष्टमी और चतुर्दशीको घर-गिरिस्तीका सब आरंभ छोड़कर प्रोषधोपवास करता था और रातमें कुटुम्ब परिग्रह तथा शरीरादिकसे ममत्व छोड़कर बड़ी धीरताके साथ मसानमें प्रतिमा-योग द्वारा ध्यान करता था। आज अष्टमीका दिन था। अपने नियमके अनुसार सुदर्शनने सूर्यास्त होनेके बाद मसानमें जाकर मुनियोंके समान प्रतिमा-योग धारण किया। सुदर्शनकी यह मसानमें आकर ध्यान करनेकी बात रानी अभयमतीकी धायको पहलेहीसे ज्ञात थी। सो कुछ रात बीतनेपर सुदर्शनको राजमहलमें लिया ले जानेको वह आई। उसने सुदर्शनको देखा। वह इस समय अर्हन्त भगवान्के ध्यानमें लीन हो रहा था। मच्छर आदि जीव बाधा न करें, इसलिए उसने अपनेपर वस्त्र डाल रक्खा था। उससे वह ऐसा जान पड़ता था मानों कोई ध्यानी मुनि उपसर्ग सह रहे हैं। निश्चलता उसकी सुमेरुसी थी।