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सुदर्शन-चरित। वृक्षोंके नीचे और ठंडके दिनोंमें नदी या तालाबके किनारोंपर तप तपा करते हैं। वे बड़े क्षमाशील, कोमल-परिणामी, सरलस्वभावी, सत्य बोलनेवाले, निर्लोभी, संयमी, तपस्वी, त्यागी, निष्परिगृही और ब्रह्मचारी होते हैं । इस धर्मका साक्षात् फल है मोक्ष
और गौण फल स्वर्गादिकका सुख । इस निष्पाप यतिधमको जैसा निर्मोही मुनि लोग ग्रहण कर सकते हैं वैसा मोही गृहस्थ स्वप्नमें भी उसे धारण नहीं कर सकते । इसी लिए कि उनका चित्त सदा आकुल-व्याकुल रहनेके कारण उनके अशुभ कर्मीका आस्रव अधिक आता रहता है और यही कारण है कि वे मुनिधर्मकी कारण वास्तविक चित्त-शुद्धिको प्राप्त नहीं कर सकते । इतने कहनेका सार यह है कि यह मोह संसारका शत्रु है, इसलिए महात्मा पुरुषोंको चाहिए कि वे इसे वैराग्यरूपी तलवारसे मारकर धर्मको ग्रहण करें ।
___ सुदर्शनके पिताने इस प्रकार निर्दोष मुनिधर्मका उपदेश सुनकर मनमें विचारा-हाय, हम लोगोंने मोहरूपी शत्रुके वश होकर धर्म-साधन करनेका बहुतसा समय संयम न धारण कर व्यर्थ ही गँवा दिया । न जाने कालरूपी शत्रु आज-कलमें कब लिवानेको आजाय, इसे कोई नहीं जान सकता । कयोंकि इस पापी कालको न बालकोंका विचार है, न जवानोंका और न बूढोंका। हर एकको अपनी इच्छानुसार यह चटपट अपने पेटमें रख लेता है। आयु बिजलीके समान चंचल है । कुटुम्ब-परिवार क्षणिक है । धन-दौलत बादलोंके समान देखते देखते