Book Title: Sudarshan Charit
Author(s): Udaylal Kashliwal
Publisher: Hindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ १४ ] सुदर्शन-चरित। थी। सुदर्शनकी उसपर नजर पड़ गई। जान पड़ता है उसे देखकर ही इसकी यह दशा हो गई है। कपिल द्वारा यह हाल सुनकर वृषभदासको बड़ी खुशी हुई । इसलिए कि मनोरमा एक तो अपने मित्रकी ही लड़की और उसपर भी सागरदत्त स्वयं सुदर्शनके साथ उसका व्याह करनेके लिए उसके जन्म न होनेके पहले ही कह चुका है। तब पुत्रके सुखके लिए वे स्वयं सागरदत्तके घर जानेको तैयार ही हुए थे कि इतनेमें मनोरमाका पिता उनके घरपर आ उपस्थित हुआ। कारण इधर जैसे सुदर्शन मनोरमाको देखकर कामसे पीड़ित हुआ, उधर मनोरमाकी भी यही दशा हुई। सुद र्शनको देखकर जो कामाग्नि धधकी वह उसके हृदय और शरीरको बड़े प्रचण्डरूपसे जलाने लगी। कामने मानों उसे ग्रास बना लिया। वह घर आकर अपनी सेजपर जा सोई । सुदर्शनका वियोग उसे अत्यन्त कष्ट देने लगा। उसकी यह दशा देखकर उसके पिताने उसकी सखी-सहलियोंसे इसका कारण पूछा। सुदर्शनपर मनोरमाका प्रेम हुआ सुनकर सागरदत्त उसके घर पहुँचा । सुदर्शनका पिता तो जानेके लिए तैयार खड़े ही थे कि इसी समय एकाएक सागरदत्तको अपने यहीं आया देखकर वे बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सागरदत्तका उचित आदर-सत्कार कर उसे एक अच्छी जगह बैठाया और आप भी बैठे । इसके बाद बड़े नम्र शब्दोंमें उन्होंने सागरदत्तसे पूछा--हाँ आप वह कारण बतलाइए जिससे कि मेरे क्षुद्र गृहको अपने चरणोंसे पवित्र कर आपने मेरा सौभाग्य बढ़ाया। सागरदत्तने तब मधुर मधुर हँसते हुए कहा-महाशय, मुझे इस बातकी आज

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52