Book Title: Sudarshan Charit
Author(s): Udaylal Kashliwal
Publisher: Hindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay

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Page 22
________________ सुदर्शनकी युवावस्था । । १७ सच्चे मोक्षमार्गका प्रचार करना और भव्यजनोंको उसमें प्रवृत्त कराना उनका काम था। जीवमात्रका हित हो और वे ज्ञान लाभ करें ऐसे उपायों कोशिशोंके करनेमें वे सदा तत्पर रहा करते थे। बागके मालीने उनके आनेके समाचार राजा वगैरहको दिये। शहरके सब लोग अपने अपने परिजनके साथ पूजन सामग्री ले-लेकर बड़े आनन्दसे उनकी पूजा-वन्दना करनेका गये। वहाँ सब संवके साथ विराजे हुए समाधिगुप्त योगिराजकी उन्होंने बड़ी भक्तिके साथ आठ द्रव्योंसे पूजा की, उन्हें सिर झुका नमस्कार किया, बड़े प्रेमके साथ उनके गुण गाये-स्तुति की। इसके बाद धर्मोपदेश सुननेकी इच्छासे वे सब उनके पावोंके पास बैठ गये । समाधिगुप्त मुनिराजने उस धर्मामृतकी प्यासी भव्यसभाको धर्मवृद्धि देकर इस प्रकार उपदेश करना आरंभ किया ___ भव्यजनो, जिनभगवान्ने जिस धर्मका उपदेश किया वह पवित्र दयाधर्म संसारमें सब धर्मोंसे उच्च धर्म है । उसमें जीव मात्र, फिर चाहे वह छोटा हो या बड़ा, समान दृष्टिसे देखे जाते हैं-किसी भी जीवको प्रमाद या कषायसे जरा भी कष्ट पहुँचाना उसमें मना है और उसकी यह उदार भावना है कि 'मा कार्षीत्कोपि पापानि मा च भूत्कोपि दुःखितः ।' मतलब यह कि न कोई पापकर्म करे और न कोई दुखी हो-संसारके जीवमात्र सुखलाभ करें। तब भव्यजनो, तुम इसी पवित्र धर्मको दृढ़ताके साथ धारण करो । देखो, यह दयामयी धर्म पापोंका नाश करनेवाला और मोक्ष-सुखका देनेवाला है। इसी

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