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सुदर्शन-चरित। बड़ा बोलनेवाला था, स्वरूपवान् था, गुणी था और हृदयका बड़ा पवित्र था। एक महापुरुषमें जो लक्षण होने चाहिएँ, वे यशस्विता, तेजस्विता आदि प्रायः सभी गुण सुदर्शनको प्राप्त थे । इस प्रकार युवावस्थाको प्राप्त होकर अपने गुणों द्वारा सुदर्शन देवकुमारों जैसा शोभने लगा।
यह सब पुण्यका प्रभाव है कि जो सुदर्शन कामदेव और गुणोंका समुद्र हुआ; और जिसकी सुन्दरताकी समानता संसारकी कोई वस्तु नहीं कर सकी। इसे जो देख पाता उसीकी आँखोंमें यह बस जाता था-सबको बड़ा प्रिय लगता था। इस प्रकार कुमार अवस्थाके योग्य सुखोंको इसने खूब भोगा । तत्र जो तत्वज्ञ हैं-धर्मका प्रभाव जानते हैं उन्हें उचित है कि वे भी धर्मका सेवन करें। क्योंकि धर्म ही धर्मप्राप्तिका कारण और सुखकी खान है। और इसीलिए धर्मात्मा जन जिनधर्मका आश्रय लेते हैं। धर्मसे सब गुण प्राप्त होते हैं। धर्मको छोड़कर और कोई ऐसी वस्तु नहीं जो जीवका हित कर सके। ऐसे उच्च धर्मका मूल है दया। उसमें मैं अपने मनको लगाता हूँ-एकाग्र करता हूँ। इस धर्मको मेरा नमस्कार है। वह मेरे पापोंका नाश करे ।