Book Title: Sudarshan Charit
Author(s): Udaylal Kashliwal
Publisher: Hindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay

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Page 18
________________ सुदर्शनकी युवावस्था । सुदर्शनकी युवावस्था । [ १३ जो सदा जीवोंका कल्याण-हित करनेवाले हैं और संसारके सर्वोत्तम शरण हैं, उन अर्हन्त, सिद्ध, साधु और सर्वज्ञ - प्रणीत धर्मको मेरा नमस्कार है । 1 एक दिन सुदर्शन अपने मित्रोंको साथ लिये शहर में घूमनेको निकला । वह हँसी - विनोद करता हुआ जा रहा था । उसकी खूबसूरतीको देखकर लोग मुग्ध होते थे । इसी समय मनोरमा सोलहों श्रृंगार किये अपनी सखी - सहलियोंके साथ जिनमन्दिरको जा रही थी । सुदर्शनने उसे देखा - उसकी रूपसुधाका पान किया । उसे जान पड़ा कि किसी गुप्त शक्तिने उसके हृदयको बड़े जोरसे पकड़ लिया । वह छूटने की कोशिश करता है पर छूट नहीं पाता - मनोरमा पर वह अत्यन्त मोहित हो गया । वह वहाँसे आगे न बढ़कर वापिस घरकी और लौटा। उसकी बे-चेन अवस्था बढ़ती ही जाती थी । घर जाते ही वह विछौनेपर जा पड़ा। उसकी यह दशा देखकर उसके माता- पिताने उससे पूछा- बेटा, एकाएक तेरी ऐसी बुरी हालत क्यों हो गई ? खुदर्शन लज्जाके मारे उन्हें कुछ उत्तर न दे सका। तब उन्होंने उसके मित्र कपिलसे पूछा । कपिल बोला- पिताजी, हम लोग शहरमें घूमते हुए चले जा रहे थे। इसी समय अपने सागरदत्त सेठकी लड़की मनोरमा मन्दिर जा रही

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