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सुदर्शन-चरित।
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कल्पवृक्ष और देवोंके महलका, विशाल समुद्र और बढ़ती हुई प्रचण्ड - अनिका देखा । सवेरे जब वह उठी
और स्वप्नका उसे स्मरण हुआ तब वह बड़ी आनन्दित हुई। धर्मप्राप्तिके लिए पहले उसने सामायिकादि क्रियायें की। इसके बाद वह खूब गहने-गाँठे और सुन्दर वस्त्रोंको पहर कर अपने स्वामीके पास पहुँची । बड़े विनयके साथ उसने वृषभदाससे अपने स्वप्नका हाल कहा । उस शुभ स्वप्नको सुनकर उन्हें भी बड़ा आनन्द हुआ । सेठने तब जिनमतीसे कहा-प्रिये, चलो, जिनमंदिर चलकर ज्ञानी मुनिराजसे इस स्वप्नका हाल पूछे । क्योंकि इसका फल जैसा मुनिराज कह सकेंगे वैसा कोई नहीं कह सकता । यह कहकर वृषभदास जिनमतीको साथ लिये जिनमंदिर पहुँचे । उन्हें स्वप्नका हाल जाननेकी बड़ी उत्कंठा लगी थी। पहले ही उन्होंने धर्मप्राप्तिके लिए भक्तिके साथ भगवान्की पूजास्तुति और बन्दना की । इससे उन्हें महान् पुण्यका बंध हुआ । इसके बाद वे तीन ज्ञान-धारी श्रीसुगुप्ति मुनिराजके पास पहुंचे। उनकी भी पूजा-स्तुति कर उन्होंने उनसे स्वप्नका फल पूछा। योगीने अनुग्रह कर सेठसे कहा-सेठ महाशय, ध्यानसे सुनिए । मैं आपको स्वप्नका फल कहता हूँ। स्वप्नमें पहले ही जो सुदर्शन मेरु देखा है उससे आपको एक पुत्र-रत्नकी प्राप्ति होगी। वह बड़ा साहसी और अत्यन्त स्वरूपवान् कामदेव होगा। अपने गुणोंसे वह खूब मान-मर्यादा लाभ करेगा। कल्पवृक्षके देखनेसे वह बड़ा धनी, दानी, भोगी और सबकी आशाओंको पूर्ण करनेवाला होगा और जो