Book Title: Sudarshan Charit
Author(s): Udaylal Kashliwal
Publisher: Hindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay

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Page 12
________________ सुदर्शनका जन्म । [ ७ चम्पानगरी की प्रजा बड़ी सौभाग्यवती थी, जो जैसी नगरी सुन्दर और सब गुणोंसे परिपूर्ण थी वैसे ही गुणी और सब राजोंके शिरोमणि राजा भी उसे पुण्यसे मिल गये । उनका नाम धात्रीवाहन था । वे बड़े धर्मात्मा थे, दानी थे, प्रतापी थे और शीलवान् थे । राजनीतिके वे बड़े धुरंधर विद्वान् थे । प्रजापर उनका अत्यन्त प्रेम था । अपने इन गुणोंसे वे चक्रवर्तीकी तरह तेजस्वी जान पड़ते थे । उनकी रानीका नाम अभयमती था । पट्टरानीका उच्च सम्मान इसे ही प्राप्त था । यह बड़ी सुन्दरी और गुणवती थी । 1 1 चम्पानगरीके राजसेठका सम्मान वृषभदासको प्राप्त था । वृषभदास बड़े धर्मात्मा और पवित्र रत्नत्रय - व्रत-संयम- शील आदि गुणोंके धारक थे। बड़े स्वरूपवान् थे । देव गुरुके वे बड़े भक्त थे और सदाचारी थे | जिनधर्म पर उनका बड़ा प्रेम था । इन्हीं गुणोंके कारण सारी चम्पानगरी में उनकी बड़ी मान-मर्यादा थी। उनकी स्त्रीका नाम जिनमती था । वह बड़ी सुन्दरी थी - देवाङ्गनायें उसके रूपको देखकर शर्माती थी । वृषभदासके समान यह भी जिनभगवान्की पूर्ण भक्त थी, महासती थी और पुण्यवती थी। वृषभदास अपने समान ही गुणवती स्त्रीको पाकर खूब सुखी हुए । एक दिन जिनमती अपने शय्यागृह में पलंगपर सुखकी नींद सोई हुई थी । पिछली रातका समय था । इस समय उसने एक शुभ स्वप्न देखा । उसमें उसने फलोंसे युक्त सुदर्शन नामक

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