Book Title: Sudarshan Charit
Author(s): Udaylal Kashliwal
Publisher: Hindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay

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Page 10
________________ सुदर्शनका जन्म। ओर आकर्षित कर लेते हैं। उनकी छायामें बैठकर लोग गर्मीका कष्ट दूरकर बड़ा शान्तिलाभ करते हैं । वे चारों ओर बड़ी बड़ी दूरतककी जगहमें विस्तृत हैं। वे ऐसे जान पड़ते हैं जैसे योगी हो । क्योंकि योगीलोग भी जीवोंका संसार-ताप मिटाकर शान्ति देते हैं, पवित्र होते हैं और रत्नत्रयरूप फलोंसे युक्त हैं। मुनियोंका मन जैसा निर्मल होता है ठीक ऐसे ही निर्मल जलके भरे वहाँके सरोवर, कुए, बावड़ियाँ हैं । मुनियोंका मन पाप-मलका नाश करनेवाला है, ये शरीरकी मलिनता दूर करते हैं । मुनियोंका मन संसारके विषय-भोगोंकी तृष्णासे रहित हैं और वे प्यासेकी प्यास बुझाते हैं। ... वहाँके कितने धर्मात्मा श्रावक रत्नत्रय धारणकर तप द्वारा निर्वाण लाभ करते हैं, कितने ग्रैवेयक जाते हैं, कितने सौधर्मादि स्वर्गोंमें जाते हैं, कितने सरल परिणामी दान देकर भोगभूमि लाभ करते हैं और कितने देव-गुरु-शास्त्रकी पूजा द्वारा पुण्य उत्पन्न कर इन्द्र या तीर्थकरोंके वैभवको प्राप्त करते हैं । वहाँ उत्पन्न हुए लोग जब अपने पवित्र आचार-विचारों द्वारा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थीको प्राप्त कर सकते हैं तब वहाँका और अधिक वर्णन क्या हो सकता है ? अंगदेश इस प्रकार धन-दौलत, धर्म-कर्म, गुण-गौरव आदि सभी उत्तम बातोंसे परिपूर्ण है। जिस समयकी यह कथा है उस समय अंगदेशकी राजधानी चम्पानगरी थी। वह बड़ी सुन्दर और गुणी, धनी, धर्मात्मा पुरुषोंसे युक्त थी। बड़े ऊँचे ऊँचे कोटों, दरवाजों, बावड़ियों, खाइयों और

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