Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah
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लेहं लिवीविहाणं जिणेण यंभीइ दाहिणकरेणं । गणियं संखाणं सुंदरीइ वामेण उवइ8 ॥३४६॥ इय पालिऊण रजं तेवट्ठिपुबसयसहस्साई । सामी चरित्तसमयं ओहीणाणेण मुणइ सयं ॥३४७॥ सारस्सयमाईच्चा वैण्हीवरुणा य गद्देतोया य। तुसिया अंबाबाहा अग्गिच्चा चेव रिट्ठा य ॥३४८॥ एए देवनिकाया भयवं बोहिंति जिणवरिंदं तु । सबजगजीवहिययं भयवं! तित्थं पवत्तेहि ॥३४९॥ संवच्छरेण होही अभिनिक्खमणं तु जिणवरिंदरस । तो अत्थसंपयाणं पवत्तए पुर्वसूरम्मि ॥५०॥ संघाडगतियच उक्कचञ्चरचउमुहमहापहपहेसु । दारेसु पुरवराणं रत्थामुहमज्झयारेसु ॥३५॥ वरवरिया घोसिजइ किमिच्छियं दिजइ बहुविहीयं । सुरअसुरदेवदाणवनरिंदमहियस्स निक्खमणे ॥३५२॥ एगा हिरण्णकोडी अद्वैव अणूणगा सयसहस्सा । सूरोदयमाईयं दिजइ जा पायरासाओ ॥३५३॥ तिण्णेव य कोडिसया अट्ठासीयं च हुंति कोडीओ।
असीयं च सयसहस्सा एवं संवच्छरे दिण्णं ॥३५४॥ पंचसयधणुञ्चतणू सामी ठविउं गुणेहि जगउच्चो । पुत्तसयं रजएसए उत्तरकुरुसिवियमारूढो॥३५५॥भवणवइवाणमंतरजोइसवासी विमाणवासी य । सविड्डीइ सपरिसा चउबिहा आगया
देवा ॥३५६॥ पुचिं उक्खित्ता माणुसेहि सा हट्ठरोमकूवेहिं । पच्छा वहंति सिवियं असुरिंदसुरिंदनागिंदा ॥३५७॥ कुसुमाणि
पंचवण्णाणि मुयंता दुंदुहीउ ताडिता । देवगणा य पहिट्ठा समंतओ उच्छयं गयणं ॥३५८॥ वणसंडो व कुसुमिओ पउमदूसरो वा जहा सरयकाले । सोहइ कुसुमभरेणं इय गयणयलं सुरगणेहिं ॥३५९॥ सिद्धत्थवणं व जहा असणवणं सणवणं
प्रथमपहरे। २ वरवरिका-अभिष्ट वस्तु मांगनेकेलिए की जाती घोषणा। ३ किमिच्छकम्-इच्छानुसारदानम्। ४ प्रातराशात्-प्रातःकालके भोजनतक। ५ सर्पपवनम् । ६ बीजक-नामकवृक्षवनम् ।
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