Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah
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LEGALASALA MAUSA
नह दिट्ठो धम्मिओ तुम इत्थ । उट्ठसु इमाउ ठाणाउ इत्थ किं चिट्ठसे कहूँ ? ॥४७॥ इय असमंजसवयणेहि दुमिओ | सम्मओ वि सो सिट्ठी । उद्वित्ता नियगेहे पत्तो परिभवविहुरचित्तो ॥४८॥ अट्टदुहवसट्टो संसयमिच्छत्तसमणुगयचित्तो। आउखएण मरि उप्पण्णो तिरियजोणीए ॥४९॥
अविय-नरसुरभोगविलासी रोगविओगाइपत्थणापरमो । अप्पवहचिंतणपरो अदृज्झाणी मुणेयबो ॥५०॥ जीववहचिंतणपरो मोसरुई परधणिकहरणमणो । अच्चंतविसयगिद्धो रुद्दज्झाणी स विण्णेओ ॥५१॥ सज्झायझाणतवनियमकरुणगुरुविणयभत्तिसंजुत्तो । छज्जीवरक्खणपरो धम्मज्झाणी हवइ जीवो ॥५२॥ खवियकसायचउक्को समसुहदुक्खो समाणभवमुक्खो। सवाऽऽसंसविमुक्को वट्टइ सुकम्मि झाणम्मि ॥५३॥ अट्टेण तिरियजोणी रुद्दज्झाणेण गम्मए नरयं । धम्मेण देवलोयं सुक्कज्झाणेण निवाणं ॥५४॥ अह सिडिजिओ भमिउं भूरिभवे भीमभवसमुद्दम्मि । संपइ सो उप्पण्णो तुह पतुरंगमो एसो ॥५५॥ नरवर ! इण्हिं अप्पाऽऽउयस्स एयरस पुषमित्तस्स । आसस्स बोहणकए तुरियं इह आगया अम्हे ॥५६॥ जो कारिज जिणहरं इच्चाइ अणेण वयणमिह सोउं । पुबभवब्भासाओ नियजाई सुमरिया सिग्धं ॥५७॥ तो भवविरत्तचित्तो अवगयतत्तो फुरंतसम्मत्तो । मह वयणाऽमयसित्तो पमोयभरमेरिसं पत्तो ॥५८॥ अह तुरओ पहुपासे पडिवज्जइ अणसणं पसंतमणो । राया वि तस्स महिमं सपरियणो पइदिणं कुणइ ॥५९॥ पिक्खंतो पहुवयणं अणिमिसनयणो समुल्लसियसवणो। निसुणंतो पहुवयणं सो तुरओ सावहाणमणो ॥६०॥ पणरसदिणअवसाणे पंचनमुक्कारसुमरणपहाणो । मरिऊण समुप्पण्णो अमरवरो सो सहस्सारे ॥६॥ जाव पउंजइ अवहिं निएइ ता नियकलेवरं एसो । उवयारं सुमरंतो
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