Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah

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Page 239
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुहाए पुणरवि फग्गुणकसिणवारसीइ सवणम्मि । अवरण्हे मुणिमुवयतित्थयरो केवलं पत्तो ॥१६॥ सुरवइकयकेवलनाणमहिमचउतीसअइसयसमेओ । विहरतो मरहट्ठे पइट्ठाणपुरम्मि संपत्तो ॥१७॥ तत्थ य बहुभवजिए पडिबोहिऊण दिवनाणेण । नियपुषजम्ममित्तं इत्थुप्पणं नियइ तुरयं ॥१८॥ तस्स पडिवोहणत्थं एगाइ निसाइ जोअणे सढेि । वहिऊण आगओ इह असंखसुरकोडिसंजुत्तो ॥१९॥ सुररइयसमोसरणे मणिमयसिंहासणम्मि उवविट्ठो। मुणितीससहस्ससमणिपण्णाससहस्सपरियरिओ॥२०॥ अमरिंदनरिंदफणिंदचंदखयरिंदनमियपयकमलो । मिच्छत्ततिमिरतरणिव बोहए भवियकमलाई ॥२१॥ नाऊण समोसरियं तित्थयरं नयरबाहिरुज्जाणे । चलिओ जियसत्तुनिवो सपरियणो सामिनमणत्थं ॥२२॥ |चडिओ तत्थ तुरंगे महाविभूईइ एत्थ आगम्म । ओयरिउं तुरगाओ पविसिय विहिणा समवसरणे ॥२३॥ काउं पयाहिण-18 तिगं भत्तीइ जिणं नमित्तु उवविट्ठो। उचियट्ठाणम्मि निवो तो भणियं भगवया एवं ॥२४॥ जो कारिज जिणहरं जिणाण जियरागदोसमोहाणं । सो पावइ अण्णभवे भवमहणं धम्मवररयणं ॥२५॥ तित्थयरमुहविणिग्गयवयणमिणं निसुणिऊण वरतुरओ । ऊहापोहपवण्णो जाईसरणं समणुपत्तो ॥२६॥ तो अग्गखुरेहि महिं पुणो पुणो खणइ हिंसए गहिरं। उल्लसियसयलगत्तो हरिसवसुप्फुल्लनयणजुओ ॥२७॥ जणसंकुले वि निहुअं गंतुं सुचयजिणस्स पयमूले । तिपयाहिणं विहे पुणो | पुणो वंदए सामि ॥२८॥ अह जियसत्तुनरिंदो हयहिययं दट्ट हरिसभरभरियं । विम्हियहियओ वंदिय जिणेसरं जंपए एवं | ॥२९॥ तं नहु चोजं जं जिणवयणेण तिरिक्खया वि बोझंति । तं चोजं जं एसो हरिस्स एयस्स हरिसभरो ॥३०॥ सिरि| मुणिसुवयसामी अह जंपइ सजलजलहरगिराए । निसुणसु नरिंद! सम्म हरिस्स हरिसस्स हेउमिणं ॥३१॥ इत्थेव भरह For Private and Personal Use Only

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