Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah
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तंजहा - जय जय वीरजिणेसर ! जय जय तियसिंदनमियपयकमल ! । जय तिहुयणभवणुद्धरण! सरण ! भवभीयभवियाणं ॥ ४४ ॥ जय कुगइनयर गोउरकवाड ! निघाणणयरपहदीव ! तह कुण अम्ह पसायं निवडेमो जह न संसारे ॥४५॥ इय थोडं बीरजिणं नियनियठाणम्मि ते निविट्ठाई । णिसुणंति धम्मदेसणमिणमो पहुणा कहिज्जंतिं ॥४६॥ दसचलगाइदिट्टंतदुलहं लहिय माणुसं जम्मं । वरसम्मत्तपवित्तं जिणधम्मं कुणह जत्तेण ॥४७॥
तहाहि - पुत्तकमेण जिओ गंठिं भित्तूण लहइ सम्मत्तं । सो पावइ जिणधम्मं पि सबओ देसओ वा वि ॥४८॥ लडूण वि जिणधम्मं न निञ्चलं होइ जस्स सम्मत्तं । सो परिवडेइ पुणरवि भमइ अणतं पि संसारं ॥ ४९ ॥ जो पुण अपरिवडियं सम्मत्तं धरइ णिच्चलं जीवो । आसण्णसिद्धिसुक्खस्स लक्खणं तस्स साहेमि ॥५०॥ जीवाइतत्तसासयमसासयं जं जिणेहि पण्णत्तं । तं सम्मं भावंतो नीसंको सो मुणेयधो ॥५१॥ संसारदुक्खदुहियं पाणिगणं जो निएवि करुणाए । उवयरइ सत्तिओ सो णेओ करुणापरो भयो ॥५२॥ चउसु वि गईसु दुक्खं मुणेवि संसारभीरुओ वसइ । उज्जमइ धम्मकज्जे णिधेयपरो स विष्णेओ ॥५३॥ पजंतेसु अणिच्चं णरसुरसुक्खं पि तिणसमं गणइ । अहिलसइ सिद्धिसुक्खं संवेयपरं च तं जाण ॥५४॥ असुहं कम्मविवागं णाऊण कयावि जो न रूसेइ । कयदोसेसु वि सदओ तं उवसमसंगयं मुणह ॥५५॥
अवय- दट्टण जिणवरिंदं पुलइज्जइ जो ससंभ्रमं सहसा । मुणिदंसणाणुरागी साहम्मियवच्छलो सदओ ॥५६॥ अरिहंत सिद्धपवयण गुरुथेर बहुस्सुयाइठाणेसु । उज्जमइ भावसारं संकाइविवज्जिओ सुमई ॥५७॥ जीयं जोबणलच्छी खणभंगुरयं मुणेवि सबमिणं । उज्जमइ धम्मकज्जे सो भवो विमलसम्मत्तो ॥ ५८॥
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