Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah
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च्छिकमंडलं जयइ भुवणचंदगुरू । तस्स विणेओ जाओ गुणभवणं देव भद्दमुणी ||७|| तप्पयभत्ता जगचंदसूरिणो तेसि दुण्णि वरसीसा । सिरिदेविंदमुनिंदो तहा विजयचंद्रसूरिवरो ॥८॥ इय सुदरिलणाइ कहा णाणतवच्चरणकारणं परमं । मूलकहाओ फुडत्था लिहिया देविंदसूरीहिं ॥९॥ परमत्था बहुरयणा दोगच्चहरा सुवण्णलंकारा । सुणिहिब कहा एसा णंदर विबुहस्तिया सुयरं ॥ १०॥ [ ४०५२] ग्रंथाग्रंथम् [ ४५००] अक्षरमात्रपदस्वरहीनं व्यंजन संधिविवर्जि तरेफम् । साधुभिरेव मम क्षमितव्यं को न विमुह्यति शास्त्रसमुद्रे ||१|| श्रीमद्वृहत्तपागणनाथश्री सुरसुन्दरगुरूणाम् । शिष्योऽशोधयदेतां प्रतिं प्रयलेन समयमाणिक्यः ॥ २ ॥ श्री सुधानन्द विबुधाधीश्वरश्रीमहीसमुद्रवाच केन्द्रप्रसादादियमशोधि ॥ इति ॥
॥ समत्तं सुदंसणाचरियं ॥
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