Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah
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परिपालिब गिहिधम्मं नियमं सो तीइ संजुओ राया । अणसणविहिणा मरिडं सणकुमारे समुप्पण्णो ॥ २७० ॥ ते वि हु सुणंदपुत्ता गिहिधम्मं गहिय मायपि सहिया । सधे वि गया गेहे पहू वि अण्णत्थ विहरे ||२७१ ॥ समणोवासगधम्मं सो सिट्टी पालिऊण कवि दिणे । सह धारिणीइ मरिडं समाहिजुत्तो दिवं पत्तो ॥ २७२ ॥ ते उस हमाइणो पुण कइया वि सहोयरा फुरियसद्धा । पडिवज्जिय पडिमाओ सम्मं फासितु सबाओ || २७३ ॥ सधे वि भवविरत्ता कुटुंबभारम्मि ठविय णियपुत्ते । चाउज्जामं धम्मं पडिवण्णा सुगुरुसमीवे ॥ २७४ || अन्भत्थदुविहसिक्खा तिबतवच्चरणकरणणिश्चरया । सुइरं चरित्तु चरणं गुरुआणाऽऽराहणपहाणा || २.७५ || उवसमियसयलमोहा उवसमसम्मत्तचरणसुपवित्ता । उवसमसेढीइ गया उवसंतप्पा पसंतमुहा ||२७६ ॥ इक्कारसअंगधरा इक्कारसमे ठिया गुणट्ठाणे । मरिकण समुप्पण्णा ते इक्कारस वि सङ्घट्टे ||२७७|| तित्तीससागराई तत्थ सुहं माणिउं पयणुरागा । चविडं विदेहवासे होऊण सिवं लहिस्संति ॥ २७८ ॥ इय जिणधम्मस्स फलं कहिऊण किण्णरी सदितं । जंपइ दिढसम्मतो कुणसु तयं धम्मपाल ! तुमं ॥ २७९ ॥
जओ - साही मणुयत्ते लद्धे वि हु दुलहम्मि जिणधम्मे । जस्स न दिढसम्मत्तं विडंबिओ तेण णियजम्मो ॥ २८० ॥ मणुयत्ते जिणधम्मे लद्धे वि मए णियाणदोसेण । सग्गापवग्गसुक्खं हारिय किण्णरपयं पत्तं ॥२८१|| अहवा जे चिक्कणकम्मभाइणो हुंति मज्झ सारिच्छा । ते चंदकतमणिणा किणंति खलु अलियसूलमणिं ॥ २८२॥ तो जिणधम्मं काउं णियाणवंधं करेइ जो मूढो । सो धम्मपाल ! मूढो कोडीए कागिणिं किणइ ॥ २८३ ॥ जम्हा अविकलभत्ती जिनिंदधम्मम्मि हरइ दुखाई । जह दुग्गयणारीए पत्तं भावेण देवत्तं ॥ २८४ ॥ चलचित्तो मह सरिसो दुलहं लहिऊण माणुसं जम्मं । तुच्छ
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