Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah
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सुर्दसणा. चरियम्मि ॥१२॥
अण्णं च-णिस्संकियणिकंखियणिविइंगिच्छाअमूंढदिट्ठी य । उवेवूहथिरीकरणे वच्छंलपभावणे अट्ठ ॥५९॥ सम्मत्तरक्खणटुं अइयारे जो इमेऽणुरक्खेइ । पायारव सुणयरे सम्मत्तं णिच्चलं तस्स ॥६॥
तंजहा-जीवाइणवपयत्थे भावेण सया वि जो णु सद्दहइ । पेयापाइसुओ इव सुहिओ सो होइ णिम्सको ॥६॥ छज्जीववहपयत्ते कुलिंगिए ददु कट्ठकम्मपरे । णिकंखिओ न कंखइ तुच्छाहारेण मच्चुव ॥१२॥ जिणधम्मफलं पइ जस्स णत्थि कइयावि णूण संदेहो । सो समुहणहयलगई विजागहणेण चोरुव ॥६॥ मलमलिणदेहवत्थे मुणिवसहे ददु जो दुगच्छेइ । दुग्गंधव दुही सो इय णाउ हवह अदुगंछी ॥६॥ दिढे वि कुदिटिपरे अइसयवंते वि जो न मुझेइ । सो सुलससाविया इव अमूढदिट्ठी मुणेयवो ॥६५॥ चारित्तणाणदंसणसमुजए मुणिवरे पसंसेइ । उववूहइ जइधम्मं अभयकुमारोदमगसाहुं ॥६६॥ तवसीलणिरयरहणेमिकुमरपडिबोहणेण राइमई। थिरसम्मत्ता णाउं थिरसम्मत्तेण होयचं ॥६॥ | साहम्मियवच्छल्लं मुणीण बाहुब होइ काय । सावयगणाण अहवा सत्तीए भरहणाहुच ॥६८॥ जिणकप्पियमुणिसीलप्पभावपयडणपरा सुभद्दव । चंपाइ पोलिउग्घाडणेण णेया पभावणया ॥६९॥ इय अट्ठगुणविसुद्धं सम्मत्तं जस्स णिचलं अस्थि । सो संसारसमुदं तरेइ अइरेण कालेण ॥७०॥ मिच्छत्तं पि य णेयं सम्मत्तं जेण निच्चलं होइ । अमुणियगुणदोसाणं हवेइ गुणसंगहो किह णु? ॥७॥ भवसयसहस्सदुलहं मूढो हारेइ विमलसम्मत्तं । वंतरमुग्गलगहगुत्तदेवयापियरपूयाए॥७२॥ हा अण्णं च-पडिवज्जियजिणधम्मो अण्णो सवण्णुभासियं वयणं । इक्कं पि अमण्णंतो मिच्छद्दिट्ठी मुणेयवो ॥७३॥ लामूढा अणाइमोहा तहा तहा इत्थ संपयदृता । तं चेव उ मण्णंता अवमण्णंता न याति ॥७॥ एए सगच्छसाहू एवं मह
|सुदरिसणाए सहोयरचंडवे| गविबोहणणाम चउदसमो | उद्देसो।
MALASCAMERASAL
॥१२॥
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