Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
द्र जिणगिहं वि मण्णंतो । अण्णे पुण अवमण्णइ वीयं मिच्छत्तरुक्खस्स ॥७५॥ णत्थि सुपत्तं संपइ दाणं देमि त्ति कस्स है चिंतंतो । जणइ दुगंछं बोहिं हणेइ मिच्छत्तकंदो सो ।।७६॥ मलमइलमुणी दटुं न य वंदइ जो जणस्स लज्जतो। दंसण
पहा हणंतो कोसो मिच्छत्तवित्तस्स ॥७७॥ जो पुण सइ सामत्थे वसणमुविक्खेइ समणसंघस्स । सोऽणंतदुक्खसंबलसंपुण्णो भमइ संसारे ॥७८॥ जो गिहकुटुंबसामी संतो मिच्छत्तरोवणं कुणइ । तेण सयलो वि वंसो पक्खित्तो भवसमुद्दम्मि ॥७९॥ नवि तं करेइ अग्गी णेय विसं णेय किण्हसप्पो वि । जं कुणइ महादोसं तिबं जीवस्स मिच्छत्तं ॥८॥ मिच्छत्तमोहमूढो चउगइसंसारगुरुयकंतारे । छेयणभेयणपमुहं पावइ जीवो अणंतदुहं ॥८१॥ ता एयमणेगविहं मिच्छत्तं सुगइगमणपडिकूलं । वज्जेयवं सम्मत्तरयणपडिसोहणट्ठाए ॥८२॥ जह मलकलंकमुकं कणगं साहइ समीहियं कजं । तह मिच्छत्तविमुकं
सम्मत्तं साहए मुक्खं ॥८३॥ सो पुण णरिंद! मुक्खो साहिजइ सबसंगविरईए । सा सवसंगविरई हवइ महासत्तपुरुसस्स S८४॥ ता चंडवेग! खत्तियकुलसंभवखयर! तंऽसि महसत्तो । उवलद्धपुण्णपावो अवगयसंसारसब्भावो ॥८५॥ जइ
सरसि पुषजम्मं तो तोलेऊण उत्तम सत्तं । सहलीकरेह मणुयत्तगं गहेऊण पवजं ॥८६॥ गिण्हित्तु तयं तुमए पयट्टियचं तु सबकालं पि । अपमत्तमाणसेणं एयाइ विसुद्धकिरियाए ॥८७॥
तथाहि-छजीवकायरक्खं कुणसु तुम सययमायपच्चक्खं । समिईउ पंच गुत्तीउ तिण्णि पालेसु अपमत्तो ॥८८॥
पालसु तं पंचमहबयाई णिसियग्गखग्गधाराई । दंसणणाणचरित्तस्सरूवरयणतयं धरसु ॥८९॥ सुत्तत्थगहियसारो पयडीसुदंस०२१
काऊण अत्तणो विरियं । सतरसविहं पि सम्मं परिपालसु संजमं रम्मं ॥९०॥ अट्ठारसविहवंभं नवगुत्तिजुयं धरेसु सुवि
SACREARSA
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296