Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah

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Page 257
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir INIतित्थं सुरमहियं वट्टए इण्हि ॥१३॥ एयम्मि वट्टमाणे तित्थे तित्थयरवद्धमाणस्स । इह विमलसेलसिहरे आगमणं तुज्झ साहेमि ॥१४॥ निसुणसु भद्दे ! तइया सिंहलदीवाउ रायधूया सा। भरुयच्छे संपत्ता जणणिं जणयं खमावेवि ॥१५॥ कमलाइ पडिनियत्ताइ साहिए धम्मवइयरे सवे । देवीसुदरिसणाए सोउं संविग्गचित्तेणं ॥१६॥ तइया सिंघलवइणा वसंतसेणो कणिदुनियपुत्तो। अब्भत्थिऊण बहुसो अहिसित्तो कहवि नियरजे ॥१७॥ पउमाधावीइ सुओ तस्स सहाओ निरूविओ दुइओ। जणणिव ताण पासे ठविआ पउमा तहा धाई ॥१८॥ राया वि चंदउत्तो सपरियणो रायलच्छिमुज्झेवि । जिणदिक्खं पडिवण्णो सुदंसणाए विओगेण ॥१९॥ काऊणं विउलतवं मरिऊण देवलोयमणुपत्तो । सो पुण वसंतसेणो सिंघलदीवे कुणइ रजं ॥२०॥ कालेण सो वि रजं चइउं पडिवज्जिऊण तवचरणं । मरिउं विराहियवओ असुरकुमारेसु उववण्णो ॥२१॥ संपइ सो वेयड्ढे दाहिणसेढीइ चंदरहणयरे । णामेण चंडवेगो राया विजाहरो जाओ ॥२२॥ वररूवलक्खणधरो नवजोवणसंपर्य समारूढो । सो अण्णया रमंतो पत्तो भरुअच्छनयरम्मि ॥२३॥ सिरिसवलियाविहारे किण्णरगंधवजक्खजुवईणं । गेयरवं निसुणंतो संपत्तो जाव जिणभवणं ॥२४॥ ता महुरगिरा लवणीहि मंगलं पभणिउं सुरवहूहिं । खिविऊण कुसुमवुट्ठी पारद्धं पवरपिच्छणयं ॥२५॥ तम्मि य वर्दृते विविहभावरुइरम्मि अमरणारीहिं।। लाअग्धविहत्थाहि तओ एगा जुबई समुच्चरिया ॥२६॥ 1 तंजहा-जा सुरसेलसहियकुलपबय गयणि तवेइ दिणयरो, गहणक्खत्ततारागणसोहिओ णहि परिभमइ ससहरो। 13 ता सरयमियंकमुत्ताहलखीरोयहिजलुजला देविसुदरिसणाइ सुरणारीहिं गिजउ कित्तिणिम्मला ॥२७॥ तत्तो सुदरि CONOCRACANCEREASANSAR ANSIKANERSARSANSAR For Private and Personal Use Only

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