Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
सुदंसणाचरियम्मि
॥ ११० ॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
खित्ते सुपसिद्धं अस्थि पउमिणीखंडं । तत्थ जिणधम्मसिट्टी निवसइ जिणधम्ममयकुसलो ||३२|| तत्थ य नयरपहाणो सागरदत्तो य पउरजणनाहो । दक्खो दक्खिण्णनिही दयालुओ अस्थि वरसिट्ठी ॥ ३३ ॥ सो मित्तं जिणधम्मस्स तस्स संसग्गओ इमो जाओ । जिणधम्माभिमुहमई विसेसओ दाणविणयरुई ||३४|| तेण य कयाइ पुधिं तम्मि पुरे कारियं सिवाययणं । तप्पूयाइ निउत्ता सइवा बहुदधविणिओगा ||३५|| अह अण्णया कयाई जिणधम्मजुओ गओ मुणिसमीवे । तं वंदिउं निसण्णो वयणमिणं सुणइ गुरुवयणा ||३६|| भवियाण अग्गओ दाणधम्मपगए कहिज्जमाणम्मि। जो कारिज जिणहरं इच्चाईवयणसंबंधं ॥ ३७॥ तं वयणं सुमरंतो पुणरुत्तं नियमणम्मि विहसंतो । सिट्टी सागरदत्तो जिणधम्मं सुबह मण्णंतो ॥ ३८ ॥ जिणधम्ममित्तवयणेण जिणहरं कारवेइ सो रम्मं । बिंबं च जिणस्स वरं तत्थ पइट्ठाविधं तेण ॥ ३९ ॥ अह अण्णया कयाई तत्थ कयत्थियसमत्तदुत्थजणो । सिसिरसमओ पयट्टो पष्फुल्लियकुंदकुसुमभरो ॥४०॥ उभयभुयपाडेयाई सिसिरसमीरणसमीरियंगाई । वायंति दंतवीणं दरिद्दडिंभाइ जत्थ चिरं ॥ ४१ ॥ सीयभरेण हयाई जत्थ मिलायंति कमलिणिवगाई । सुयणमणाइ व मम्माणुवेहिणा महुरवयणेण ||४२ || हेमंता अकंता तुसारसंभारसंगमेण जहिं । घट्टीहुंति जलोहा नीया इव विहवनिवहेण ॥४३॥ इय एरिसम्मि सिसिरे सइवेहिं सिवगिहे समाहूओ । सागरदत्तो सिट्ठी अहऽण्णया लिंगपूरणए || ४४ ॥ तत्थ घयगंधवसओ घएलियाओ बहुभमंतीओ। सइवचरणेहि निहयाउ पिच्छिउं भणइ इय सिट्ठी ॥४५॥ किं तुज्झं जुत्तमिणं मुणीण मज्झे गणिजमाणाणं । तो ते रुट्ठा भणिडं दडुड्डा निडुरं लग्गा ॥ ४६ ॥ तं सिट्टि ! सुनिट्ठिय !
१ पाठअ०] प्रावृत-आच्छादित ।
२ हेमन्ताः हेमंत ऋतु उत्पन्न ।
For Private and Personal Use Only
अस्सावबोहतित्थप्प
रूवगो नाम इगदसमु
देखो ।
॥ ११० ॥

Page Navigation
1 ... 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296