Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah

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Page 245
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करणं मुणिदंसणमिह विसेसेण ||५|| लद्धाएसा कमला नमेवि चलणेसु रायधूयाए। चडिऊण जाणवत्तं संचलिया दाहिणाभिमुहं ॥ ६ ॥ अह अण्णया कयाई रायसुयाए पहाणदिवसम्मि । पूएवि समणसंघं पउरजणं आगमविहीए ॥ ७॥ पूएवि सुत्तहारो विणएणऽभत्थिऊण सो भणिओ। एसा मह रायसिरी साहीणा तुज्झ सवा वि ॥ ८॥ परिभाविऊण एगं करेह तह जिणहरं मणहरं तु । जह पिच्छिऊण विबुहा वि हुंति गुणकित्तणे पडणा ॥९॥ एसोय उसभदत्तो निरूविओ तुह मए तह सहाओ । जेण समीहियकज्जं असहायाणं न सिज्झेइ ॥ १०॥ तह सो सिट्टी भणिओ रायसुयाए सुभद्द ! जइवि तुमं । जिणसमए कुसलमई तहवि मए इह भणेयबो ॥११॥ जं जह मुणीहि भणियं जिणभवणं भद्द ! तुज्झ पञ्चक्खं । तं तह विहिणा तुरियं जयणाइ तुमं कराविज्जा ॥ १२ ॥ एवं लद्धाएसो कयसम्माणो य उस भदत्तो सो। वरसुत्तहारसहिओ गओ ममोसरणठाणम्मि ॥ १३॥ काउं संतिविहाणं सिलानिवेसं करेवि सुमुहुत्ते । पूएवि सुत्तहारं पारद्धं जिणहरं तुंगं ॥ १४ ॥ पारद्धे जिणभवणे विसेसओ निवसुया जिणगिहम्मि । ण्हवणञ्चणाइविहिणा पइदियहं मंगलं कुणइ ॥ १५॥ दीणाण दुत्थियाणं बहुदाणं देइ पूयए संघं । वाहिविहुराण वियरइ करुणाए ओसहाईणि ॥१६॥ घोसावेइ अमारिं सवत्थामेण भवजीवाणं । अण्णं पि धम्मकज्जे सुसंगयं कुणइ भावेण ॥१७॥ बहुभक्खभुज्जतं वोलपुप्फवत्थेहि निवसुया निच्चं । विष्णाणियकम्मारा तोसेइ तहा पसंसेइ ॥ १८ ॥ भणियं च धम्मकज्जे निबद्धमुलस्स तह विसेसेण । अहिययरं दायचं जेण पसंसेइ सबो वि ॥ १९॥ एस पसं | साधम्मो दूहवियवो न कोइ कइया वि । जत्थेवं जीवदया तत्थ सुहं सासयं भणियं ॥ २० ॥ एवं सुहंसुहेणं बोलीणा तत्थ जाव छम्मासा । निधिग्धं जिणभवणं निष्फण्णं ता महातुंगं ॥२१॥ For Private and Personal Use Only

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