Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah

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Page 247
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SCSCORBSESSASSASSIST जिणेहि परिकहियं ॥३६॥ तं सर्व सविसेसं संपुण्णं ढोइऊण जिणपुरओ । सबोसहिमाईयं मेलित्तु समग्गसामग्गिं ॥३७॥ जाइकुलसुद्धसुइवंभयारिसंपुण्णदेहसियवस्था । बत्तीस हुंति इंदा सुसावया जिणमए कुसला ॥३८॥ अट्ठ कुलीणाउ सुवासिणीओ सिरठवियकणयकलसाउ । उच्चरियमंगलाओ कयसिंगारा अविवाओ॥३२॥ सुमुहुत्ते अहिवासिय जिणविंबे सुद्धलग्गसुहअंसे । पत्ते पसंतचित्तो नियकिच्चे कुणइ इत्थ गुरू ॥४०॥ तंजहा-थुइदाणमंतणासो आहवणं तह जिणाण दिसिबंधो । नित्तुम्मीलणदेसणगुरुअहिगारा इहं कप्पे ॥४॥ गायंतमहुरसरगायणेहि वज्जतविविहतूरेहिं । नच्चंततियसरमणीरमणीयतराहि रमणीहिं ॥४२॥ इयएवमाइजयजयरवेण दिर्जत-14 भूरिदाणेणं । जिणपडिमाण पइट्टा कराविया रायधूयाए ॥४३॥ तह सुइभूया विहिणा सुदरिसणा करइ पंचविहपूया ।। वरकुसुमाऽऽहरणपसत्थवत्थवलिथुइसुथुत्तेहिं ॥४४॥ गोसीससुरहिकुंकुममयणाहिविलेवणेण बहवेणं । भत्तिभरपुलइयंगी विलिंपए सुवयजिणिंदं ॥४५॥ इंदवइदुजमरगयनीलुप्पलचंदकंतिदिप्पंतो । जिणइंदसिरे मउडो पविरइओ रायधूयाए ॥४६॥ नाणाविहरयणमऊहजालनासवियसयलतमनिवहो। पिहुभालयले रेहइ तिहुयणतिलयस्स वरतिलओ॥४७॥माणिक्कजडियकुंडलवरजुयलं सहइ जिणकवोलतले । सुरगिरिणो पुवावरभाए ससिसूरविंबं व ॥४८॥ पिहुलउरत्थलघोलिरमुत्तियहारावलीउ रेहति । जयगुरुणो निम्मलकित्तिकंदलीउन धवलाओ ॥४९॥ सयलजयजीववच्छलजिणिंदवच्छत्थलम्मि सिरि-17 वच्छो । रेहइ सुकयनिही इव निवेसिओ रायधूयाए ॥५०॥ निज्जियतिहुयणरूवस्स बाहुजुयलेसु भुवणनाहस्स । सोहइ केजरजुयं सुरनरसुक्खं व पच्चक्खं ॥५१॥ मंदारबउलचंपयपाडलिमुचकुंदकंचणारेहिं । सयवत्तकुंदमालइपमुहेहि सुगंधि For Private and Personal Use Only

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