Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobaith.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit
सुदंसणा-
पच बाहिरओ। दुविहमचित्तसचित्तं तिविहं तिविहेण वोसिरियं ॥५०॥ चउविहआहारस्स उ जावजीवम्मि मज्झ विणि- सुदरिसणाचरियम्मिशयत्ती । जस्स कए आहारो तस्स चिय अणिच्चदेहस्स ॥५१॥ एगो निच्चो जीवो मज्झ सया णाणदंसणसमग्गो । सेसासीलवई
संजोगा पुण भवे भवे मज्झ वोसिरिया ॥५२॥ सामाइयं च तिविहं तिविहेण करेइ सा जिणुद्दिट्ट । अरिहंतसिद्धसाहू ॥११७॥
सग्गगमणजिणधर्म सरणमल्लियइ ॥५॥
णाम तेरतंजहा-रागहोसकसाए दुजयपंचिदियाणि करणतियं । जेहि इमे अरी हणिया अरिहंता मज्झ ते सरणं ॥५४॥ समुद्देसो। भवमाले रागहोससलिलसित्तं सकम्मफलबीयं जेसि पुणो वि न रोहइ अरुहंता मज्झ ते सरणं ॥५५॥ णागिंदसुरिंदनरिंद-18 चंदखयरिंदविहियपूर्य जे । अरहंति तह सिवगई अरहंता मज्झ ते सरणं ॥५६॥ खविऊण पुण्णपावं सयलमणिच्चं मुणेविट णाणेणं । जे पत्ता परमपयं ते सिद्धा मे सया सरणं ॥५७॥ चरणकरणप्पहाणा समिईगुत्तीसु निच्चमुजुत्ता । समसत्तुमित्तचित्ता ते मन्झ सया मुणी सरणं ॥५८॥ पंचासवपंचिदियनिग्गहणो चउकसायविजयपरो । जो केवलिपण्णसो धम्मो सो होउ मह सरणं ॥५९॥ सुकयाऽणुमोयणपरा अट्ठारसपावठाणपरिमुक्का । समभावभावियप्पा नियदुक्कयगरहणुजुत्ता ॥६॥ इय एवं फग्गुणपुण्णिमाइ सा अणसणं करेऊण । जा चिट्ठइ रायसुया अह पत्तो गिम्हकालु त्ति ॥६॥ अहियकरकंत-17 धरो सूरो कुणराहिवुन दुप्पिच्छो । भट्ठग्गिसमाणअमाणलूयदुबायबलकलिओ ॥२॥ जिणवयणसिसिरगोसीसचंदणेणं व8 सिच्चमाणा सा । तं अणसणं पि मण्णइ सुदंसणा अमयपाणं व॥६॥सीलवई वि हु तम्मोहमोहिया तस्समीवमुवविट्ठा।
॥११७॥ समग्ग० युक्त। २ माल आराम ।
GANESHGRORGES
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296