Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah

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Page 237
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SIS नाणाइतियस्स जुण्णवसहगयं । भो भो भवा! भवं तम्मि पयत्तं कुणह निच्चं ॥९५६॥ ता खलु पूएयबा रयणत्तयधारिणो सया मुणिणो । तेसिं दाणं देयं तिगरणसुद्धेण भावेण ॥९५७॥ तित्थस्स मुणी मूलं मुणीण मूलं हवंति असणाई । जो देह ताणि तेसिं तु तेण तित्थुण्णई विहिया ॥९५८॥ तित्थंतरेसु वि जओ केवलिरहिएसु अजखित्तेसु । उवयारपरा मुणिणो जिणधम्मधुरंधरा भणिया ॥९५९॥ होही जो तित्थयरो अपच्छिमो इत्थ भारहे खित्ते । मुणिदाणाउ तेणाऽवि पाविया 5 दुलहा बोही ॥९६०॥ चउरो परमंगाई मुक्खस्स इमाइ हुँति दुलहाई । मणुयत्तं धम्मसुई सम्मत्तं संजमे विरियं ॥९६१॥ दसचुल्लगाइणाएहि दुलहं लहिय एयसामग्गिं । सर्व पि कुणह सहलं सुदंसणे! काउ जिणधर्म ॥९६२॥ ता जाव न जीयं नलिणिपत्तजलबिंदुसरिसमुड्डेइ । करिकण्णचला लच्छी वि जा न वच्चइ खणद्धेण ॥९६३॥ जाव न गिरिसरिसलिलप्पवाह|चवलं च गलइ लायणं । जररक्खसी वि न गसइ जाव य जीवाण तारुणं ॥९६४॥ ता जिणभवणं बिंब किजइ पूइज्जए चउहसंघो। तह कायवा भत्ती नाणस्स तहा सुणाणीणं ॥९६५॥ एएसु सत्तखित्तेसु भावओ जो ववेइ धणबीयं । थोवं पि हु सो पावइ अणंतयं मुक्खसुक्खफलं ॥९६६॥ इय सुदरिसणे ! नाउं इहेव अस्सावबोहतित्थम्मि । समवसरणस्स ठाणे जुजइ तुह जिणहरं काउं ॥९६७॥ जओ-जिणभवणबिंबपूयाजत्तावलिण्हाणनाणदाणाइ। एसा णु सुधम्मपवा देया भवियाण बोहिकरी ॥९६८॥ सुदंस०१९४८ इय सुदरिसणकहाए बुहमाणसहंसमाणससराए । रयणत्तयस्सरूवप्परूवगो दसमउद्देसो ॥९६९॥ [ इइ दसमुद्देसो] ACEBCAMASSASSAGESSAGE SARKARTEKAR For Private and Personal Use Only

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